बाबूचंद आईसीयू में भर्ती था और अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। अंतिम समय में वह गीता पाठ सुनना चाहता था, जिसके लिए एक पंडित को बुलाया गया।
पंडित ने जैसे ही पलंग के पास खड़े होकर पाठ करना शुरू किया, बाबूचंद की तबीयत और बिगड़ने लगी। वह हांफ रहा था और कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन बोल नहीं पा रहा था। उसने कागज-पेन की तरफ इशारा किया तो उसे एक कागज-पेन दे दिया गया।
बाबूचंद ने कागज पर एक नोट लिखा और गुजर गया। पंडित को लगा कि यह नोट पढ़ने का सही समय नहीं है, इसलिए उसने कागज अपनी जेब में रख लिया। बाबूचंद का क्रियाकर्म कर दिया गया और उसके बाद शोकसभा आयोजित की गई।
शोकसभा में पंडित को बोलने का मौका दिया गया तो वह बोला, ‘बाबूचंद बेहद नेक इंसान थे। जब वे अपनी आखिरी सांसें ले रहे थे, तब मैं उनके साथ ही था और उन्होंने अपने आखिरी शब्द मुझे लिखकर दि थे। आज सबके सामने मैं उस नोट को पढ़ता हूं।
उन्होंने लिखा, ‘अरे पंडित. तू मेरे ऑक्सीजन पाइप पर खड़ा है!’