कसाब और कासिम के मिलने के बाद वार्ता का क्या अर्थ!
कसाब और कासिम के मिलने के बाद वार्ता का क्या अर्थ!
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एक ओर कश्मीर में सियासत गर्म हो रही है। तो पाकिस्तान भारत के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तरीय वार्ता को लेकर तैयारियां की जा रही हैं। दूसरी ओर फिर से भारत की सीमाऐं गोलियों की गड़गड़ाहट से गूंज रही हैं। जी हां, ये हालात कोई नए नहीं हैं। वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर मसले के हल और आतंक के मसले पर वार्ता होने के दौरान अमूमन ऐसे ही हालात बनते हैं। अब तो बच्चे सियासत के गलियारों की ये दास्तान सुनते-सुनते बूढ़े भी हो गए।

मगर समस्या वैसी की वैसी बनी हुई है। हर बार पाकिस्तान से आतंक और कश्मीर के मसले पर चर्चा की जाती है लेकिन नतीजा सिफर निकलता है। भारत न तो हाफिज सईद को पाकिस्तान से हासिल कर चुका है और न ही अंडरवल्र्ड के डाॅन कहे जाने वाले दाऊद को भारत वापस लाने में कामयाब हुआ है। अलबत्ता दाऊद के साथी रहे टाईगर मेमन के भाई याकूब को सज़ा देने में उसके बाल सफेद हो गए।

सरकार याकूब को फांसी देकर ही खुशियां मना रही है। हालांकि ऊधमपुर हमले के बाद आतंकी कासिम उर्फ नावेद को पकड़ने से भारत को सफलता जरूर मिली है लेकिन आखिर उससे जुड़े सबूतों को भारत के सामने पेश करने के मायने क्या हैं। भारत ने तो मुंबई में 26/11 के मामले में आतंकी कसाब को लेकर भी सबूत पेश किए थे मगर पाकिस्तान ने यह बात भी नहीं सुनी थी।

वर्ष 1999 में जब कारगिल की शुरूआत हुई थी तो पाकिस्तान ने अपने सैनिकों के शवों को पहचानने से भी इंकार कर दिया। प्रारंभ में वह यही कहता रहा कि ये हमारे सैनिक नहीं हैं और कई सैनिकों के शव तो पाकिस्तान ने लिए ही नहीं। ऐसे में वह भारत द्वारा आतंकियों और अंडरवल्र्ड सरगना के साथ कश्मीर मसले पर तैयार किए गए डोजियार को कैसे स्वीकार कर लेगा। पाकिस्तान प्रारंभ से ही कहता आया है कि कश्मीर मसले पर उसका रूख साफ है और बदले में वह हमेशा ही भारत पर फायरिंग किए जाने का आरोप मढ़ता रहा है। ऐसे में चर्चा किस तरह से संभव है।

इस बार पाकिस्तान ने हुर्रियत काॅंफ्रेंस के अलगाववादी नेताओं को दावत पर निमंत्रित कर भारत के अंदरूनी हालात भड़का दिए। भला भारत और पाकिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर हुर्रियत नेता और अलगाववादी क्यों अपना रूख कड़ा रख रहे हैं। यदि कश्मीर मसले पर अलगाववादियों को निमंत्रित किया जाता है तो फिर पाकिस्तान इस राज्य के क्षेत्र विभाजन को लेकर कश्मीरी पंडितों को क्यों निमंत्रित नहीं करती। ये तमाम ऐसे सवाल हैं जिन्हें लेकर सटीक जवाबों की जरूरत है।

कश्मीर का भारत में विलय होने के साथ ही यह तय हो गया था कि कश्मीर की एक एक इंच जमीन भारत का अभिन्न अंग है फिर इस मामले में पाकिस्तान से किसी तरह की वार्ता की जरूरत ही नहीं है फिर भी पाकिस्तान इस मसले को बार - बार सामने लाना ही चाहता है तो उसे वार्ता करने की जरूरत है। सद्भाव के साथ की जाने वाली वार्ता से ही कोई हल निकल सकता है। दूसरी ओर पाकिस्तान को वार्ता के दौरान सीमा पार से होने वाली फायरिंग को भी रोकना होगा। यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है कि उसकी सरकार भारत के साथ सद्भावनापूर्ण चर्चा करना चाहती है 

लेकिन उसका अपनी ही सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। भारत को इस बात से कोई सरोकार नहीं रहना चाहिए कि पाकिस्तान में सेना सरकार को नियंत्रित करती है या नहीं। बस कश्मीर मसले पर वार्ता के माध्मय से समाधान निकले और फिर पाकिस्तान भारत की सीमा की ओर अतिक्रमण करने का प्रयास न करे।

मगर प्रायौगिकतौर पर यह संभव नहीं है क्योंकि पाकिस्तान प्रारंभ से ही भारत की ओर आतंक को धकेल रहा है और अब तो तालिबान और आईएसआईएस के बढ़ते कदम उसकी धरती को छू रहे हैं ऐसे में वह छद्म रूप से आतंक को भारत की ओर धकेल कर वार्ता की बात कर रहा है। जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी साख अच्छी बनी रहे। मगर पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन के छिपे होने और वहां उसके मारे जाने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह साबित हो चुका है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की शरण स्थली है। 

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