पाकिस्तान को मिला पहला दृष्टिहीन जज
पाकिस्तान को मिला पहला दृष्टिहीन जज
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साल 2014 में पंजाब यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ एलएलबी की डिग्री हासिल करने वाले लाहौर के युसूफ सलीम ने अगले दो सालों तक फ्री में लॉ की प्रेक्टिस की और जज बनने की लगभग सारी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए 6,500 उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए जज की परीक्षा भी पास कर ली. लेकिन अंत में इंटरव्यू के दौरान उन्हें बाहर निकाल दिया गया और वहज बताई गई उनका दृष्टिहीन होना. दरअसल 25 वर्षीय यूसुफ़ सलीम को रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नामक एक ख़ास अनुवांशिक बीमारी है. जिसकी वजह से बचपन में उनके आँख की रौशनी महज 30-40 फ़ीसदी थी, लेकिन समय के साथ उनके आँखों की रौशनी पूरी तरह ख़त्म हो गई. अब उन्हें अपनी आखों में सिर्फ रौशनी का आभास होता है. इस मामले के सामने आने के बाद पाकिस्तान के चीफ़ जस्टिस साक़िब निसार ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लिया.

उनके मामले पर चयन समिति ने पुनर्विचार किया और तब जाकर युसूफ़ का इस पद के लिए चयन किया गया. अब वह पाकिस्तान के पहले दृष्टिहीन जज बनने के लिए तैयार हैं. 'मैंने युसूफ से लाहौर स्थित उनके घर पर मुलाकात की. जैसे ही उन्होंने कमरे में प्रवेश किया, मैं उन्हें बिठाने में मदद करने के लिए उठा. लेकिन इससे पहले कि मैं कुछ क़दम चलता, वो तेज़ कदमों से कमरों में चलते हुए मेरी बगल में आकर बैठ गए. उन्होंने जज बनने के दौरान आने वाली अपनी परेशानियों के बारे में मुझे बताया और साथ ही यह भी बताया कि इस पेशे को चुनने की प्रेरणा उन्हें कैसे मिली.' उन्होंने बताया, "इंटरमीडिएट के बाद मुझे लॉ करने का मन था, ये वो वक्त था जब न्यायपालिका को बहाल करने के लिए पाकिस्तान में वकीलों का आंदोलन चल रहा था. उसमें मुझे वकीलों की भूमिका बहुत आकर्षक लगी.

पाकिस्तान आंदोलन में शामिल मोहम्मद अली जिन्ना और डॉ. मोहम्मद इक़बाल दोनों ने लॉ की पढ़ाई की थी, इससे भी मुझे प्रेरणा मिली.'' "मुझे लॉ प्रैक्टिस करना अच्छा लगता है और मैंने इसे किया भी है, लेकिन मुझे लगा कि जज बनना ज़्यादा बेहतर होगा क्योंकि इससे मैं क़ानून के तहत फ़ैसले लेने और लोगों को न्याय देने में सक्षम हो जाऊंगा." 'हर दिन आपको साबित करना होता है' उनका मानना है कि पाकिस्तान में न्याय प्रक्रिया बहुत धीमी है. वो कहते हैं, "कुछ लोग अपना पूरा जीवन लगा देते हैं, फिर भी न्याय पाने में सक्षम नहीं हो पाते." वो जजों की कमी और बड़ी संख्या में उन पर मामलों का बोझ होना इसका एक कारण बताते हैं. एक दृष्टिहीन व्यक्ति के रूप में संघर्ष के बारे में वो कहते हैं, "आपको पता है कि आप चीज़ें कर सकते हैं, लेकिन इसे लेकर दूसरों को यक़ीन दिलाना बहुत मुश्किल होता है."

 

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