आर्थिक रूप से कंगाली के कगार पर पहुंच चुके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले एक महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में क्रमश: 30 और 42 रु. प्रति लीटर की कमी करते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों में भारी कमी का लाभ उपभोक्ताओं को देने की घोषणा की है. लेकिन अगले कुछ वर्षों में भारत को 5 खरब (ट्रिलियन) डालर की अर्थव्यवस्था बनाने का दावा करनेवाली हमारी केंद्र और राज्य सरकारों ने दाम कम करने और उसका लाभ उपभोक्ताओं को देने के बजाय पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी और वैट को बढ़ा दिया है.
दरअसल, कोरोना और उसके चलते लॉकडाउन के कारण केंद्र और राज्य सरकारों की कमाई काफी घट गई है. डांवाडोल हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था को खड़ी करने के लिए भी सरकार को पैसे की जरूरत है. वह राजकोषीय घाटे का बोझ बढ़ा पाने की स्थिति में नहीं है इसलिए अभी तक किसी दूसरे राहत पैकेज की घोषणा नहीं की गई है. सरकार के लिए राहत की खबर कच्चे तेल की कीमत में आई ऐतिहासिक गिरावट से मिली.
इस समय (अप्रैल 2020) अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय बास्केट में कच्चे तेल की कीमत औसतन 20 डालर प्रति बैरल (1540 लीटर) है जो इसी साल जनवरी में 64.31 और मार्च में 33.36 डालर प्रति बैरल थी. इस हिसाब से देखा जाए तो देश में उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में अच्छी कमी मिल सकती थी लेकिन हमारी सरकारों ने कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक कमी का लाभ उपभोक्ताओं को देने के बजाए सरकारी खजाने को भरना श्रेयस्कर समझा. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले राज्य सरकार के वैट में क्रमश: 1.67 रु. और 7.10 रु. की वृद्धि कर दी. देखा देखी कई अन्य राज्य सरकारों ने भी अपने राज्यों में वैट बढ़ा दिए. लगे हाथ केंद्र सरकार ने भी मंगलवार, 5 मई को ही पेट्रोल पर 10 और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क बढ़ा दिया. इससे दो महीने पहले, मार्च 2020 में भी केंद्र सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर तीन-तीन रु. उत्पाद शुल्क बढ़ाए थे. उत्पाद शुल्क में इस साल दो बार की बढोत्तरी से सरकार को इस वित्त वर्ष (2020-21) में करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये की कमाई की उम्मीद है। लेकिन इसके लिए पेट्रोल-डीजल की खपत 2019-20 की कुल मांग के बराबर होनी चाहिए. मुश्किल यह है कि लॉकडाउन में अधिकतर, वाहनों के सड़क और रेल पटरियों से दूर रहने के कारण पेट्रोल-डीजल की खपत में भारी गिरावट आई है.
तीसरे चरण का लॉकडाउन 17 मई तक चलेगा. लेकिन इस दौरान उद्योग जगत को पूरे देश में मिली ढील, सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों के खुलने, निजी वाहनों के इस्तेमाल की छूट से कुछ मांग बढ़ी है. लॉकडाउन पूरी तरह हटने या छूट बढ़ने के बाद आने वाले दिनों में पेट्रोल डीजल की मांग भी बढ़ने की उम्मीद की जा रही है.
शराब की आमदनी से चलती सरकारें!
अधिकतर राज्य सरकारों ने तो अपने राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए लॉकडाउन में भी शराब की बिक्री के लिए सरकारी दुकानें खोल दी हैं. कारण वही, राज्य सरकारों के राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब की बिक्री पर लगनेवाले आबकारी शुल्क यानी एक्साइज ड्यूटी से ही आता है. लॉकडाउन में शराब बिक्री पर रोक के कारण सरकारी राजस्व को भारी घाटा उठाना पड़ रहा था. लॉकडाउन में सरकार की आमदनी के अन्य श्रोत भी सूख से गये हैं. शायद यह भी एक कारण है कि दलगत प्रतिबद्धताओं और विरोध की परिधि को लांघ कर अधिकतर राज्य सरकारों ने 4 मई से लॉकडाउन के दौरान शराब की नियंत्रित बिक्री जारी रखने का फैसला किया है. केंद्र सरकार ने भी इसके लिए हरी झंडी दिखा दी है. नतीजा सामने है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार पहले ही दिन 1000 करोड़ रु. से अधिक की शराब बिकी. लेकिन शराब की दुकानों पर डेढ़ दो किमी. लम्बी कतारें, लाकडाउन और फीजिकल डिस्टैंसिंग (सोशल डिस्टैंसिंग गलत शब्द है) को धता बताकर टूट रही भीड़ और सड़कों पर शराबियों की धमाचौकड़ी का जो नजारा दिख रहा है, वैसा शायद पहले कभी दिखाई नहीं पड़ा. भीड़ कम करने के नाम पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शराब की बिक्री पर आबकारी शुल्क में 70 फीसदी वृद्धि की है. इसका भी अनुसरण अधिकतर राज्यों ने किया है. लेकिन हमारी कोरोना से लड़ने और फीजिकल डिस्टैंसिंग का क्या हुआ! यह भी नहीं सोचा गया कि शराब से इसके सेवनकर्ताओं के शरीर में कोरोना से लड़ने की प्रतिरोध क्षमता बढ़ेगी या घटेगी ?
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