ओजोन दिवस विशेष : जीवन के लिए ऑक्सीज़न से ज्यादा ज़रूरी है ओज़ोन
ओजोन दिवस विशेष : जीवन के लिए ऑक्सीज़न से ज्यादा ज़रूरी है ओज़ोन
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ओज़ोन परत के संरक्षण को बढ़ावा देने, और ओज़ोन के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 'संयुक्त राष्ट्र' (यूएन)  द्वारा 19 दिसंबर 1994  को, 16 सितम्बर को विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाने के लिए घोषित किया था.16 सितम्बर विश्व ओज़ोन दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी के वायुमंडल में पृथ्वी वासियों की जीवन रक्षक ढाल के रूप में विद्यमान ओज़ोन के संरक्षण करना है. यह तारीख पूर्व यूएन महासचिव 'काफ़ी अन्नान' द्वारा प्रदत्त 'मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल' की यादगार दिन के रूप में तय की गयी थी.

क्या है ओजोन परत

ओज़ोन ऑक्सीजन का अपर रूप होता है, धरती के वायुमंडल में 35 किलोमीटर की ऊंचाई पर 90 से लेकर 120 किमी. मोटी ओज़ोन परत विद्यमान है. जिस प्रकार छाता बारिश से हम को बचाता, ओजोन सूर्य से पृथ्वी को बचाती है.



पराबैगनी किरणों से बचाती है यह परत

धरती पर उन्नत जीव श्रंखला पाए जाने में ओज़ोन का बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण योगदान है. पृथ्वी के वायु मंडल में उपस्थित यह परत सूर्य में होने वाले नाभिकीय संलयन से उत्सर्जित होने वाली अत्यंत हानिकारक/घातक पराबैगनी किरण-3 और-4 को धरती के जीवधारियों तक आने से पहले 99% तक अवशोषित कर लेती है. यह पराबैगनी अल्ट्रावाइलेट(UV) किरणे अत्यंत खतरनाक होती हैं, इनके सम्पर्क में आने पर त्वचा, नेत्रज्योति, रोगप्रतिरोधक क्षमता में हानिकारक परिवर्तन के अलावा अन्य गंभीर बीमारियों के होने की पूर्ण संभावना होती है. प्रतिवर्ष बढ़ रहे वैश्विक तापमान, और कहीं -कहीं  सतरंगी आसमान दिखने की घटना बहुत बड़े खतरे की ओर इंगित करती है, जो ओज़ोन परत के क्षारण से अवगत कराती है.

पृथ्वी पर बढ़ रही मानव आबादी के साथ-साथ घट रही हरियाली, विलुप्त हो रही प्राणियों की प्रजातियों ने हमें शंका में धकेला तो ज़रूर है लेकिन हम मनुष्य पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के दम्भ में हर बात को नज़रअंदाज करते हुए प्रकृति को छेड़ते रहते हैं. ओज़ोन परत को सबसे ज्यादा नुकसान हमारी विलासिता पूर्ण जिंदगी जीने से हो रहा है.


इनसे हो रहा ओजोन को नुकसान

कार्बन डाई ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, अमोनिया, मीथेन जैसी गैसें वातावरण के साथ ही ओज़ोन की परत को भारी नुकसान पहुंचाती हैं. 1994 में हुए एक शोध से ज्ञात हुआ था कि 1930 के आस-पास से ही ओज़ोन परत का ह्रास होना शुरू हो गया था, जो निरंतर बढ़ता ही चला जा रहा है. पहले अंटार्कटिका महाद्वीप के आसमान की ओज़ोन में बहुत बड़ा छेद देखा गया था, फिर ऑस्ट्रेलिया में रंगीन आसमान देखा गया था, जहां से ओज़ोन परत गायब थी. ओज़ोन परत के ह्रास में हानिकारक गैसों  और पेड़ों की कमी के साथ दूसरा सबसे बड़ा  कारण  सुपरसोनिक विमानों के द्वारा छोड़े गए नाइट्रस ऑक्साइड जो ओज़ोन को रासायनिक अभिक्रिया से ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देते हैं, दूसरा 'परमाणु परीक्षण' है, प्लूटोनियम और यूरेनियम जैसे तत्वों के विकिरण बेहद खतरनाक होते हैं, जिनसे ओज़ोन का अवशोषण बड़ी मात्रा में हो जाता है और ऑक्सीज़न का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में होने से उस क्षेत्र के ओज़ोन की मूल संरचना में परिवर्तन हो जाता है.



गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र संघ दुनिया भर के देशों से ओजोन के संरक्षण के ​लिए प्रयास करने को कह रहा है. यूएन का कहना है कि यदि पर्यावरण के प्रति हम जिम्मेदार नहीं हुए तो, परिणाम बहुत विनाशक होगा. ​

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