बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश- जुर्म नहीं है देहव्यापार, हर किसी को अपना पेशा चुनने का अधिकार
बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश- जुर्म नहीं है देहव्यापार, हर किसी को अपना पेशा चुनने का अधिकार
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मुंबई: बॉम्बे उच्च न्यायालय ने देह व्यापार में शामिल तीन युवतियों से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए उन्हें सुधारगृह से रिहा करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने तीन महिलाओं से संबंधित देह व्यापार के केस पर सुनवाई करते हुए कहा, किसी भी वयस्क महिला को अपना पेशा चुनने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी वयस्क महिला को उसकी सहमति ले बगैर अधिक समय तक सुधारगृह में नहीं रखा जा सकता।

जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि इममॉरल ट्रैफिकिंग कानून 1956 (अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम) का मकसद देह व्यापार को समाप्त करना नहीं है। इस कानून के अंतर्गत ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं है जो देहव्यापार को स्वयं में अपराध मानता हो अथवा देह व्यापार से संबंधित किसी शख्स को दंडित करता हो। इस कानून के तहत केवल व्यवसायिक उद्देश्य के लिए यौन शोषण करने व सार्वजनिक जगह पर अशोभनीय हरकत को सजा के योग्य माना गया है।

बॉम्बे उच्च न्यायालय के जज पृथ्वीराज च्वहाण ने स्पष्ट किया है कि संविधान के तहत हर एक व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने व अपनी पसंद के स्थान पर रहने का पूरा पूरा अधिकार है। यह बात कहते हुए जस्टिस चव्हाण ने वेश्यावृत्ति से छुड़ाई गई युवतियों को सुधारगृह से छोड़ने का आदेश दिया।


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