अगर कोरोना को देना है मात तो, धर्म और इंसानियत में क्या चुनेगे आप ?
अगर कोरोना को देना है मात तो, धर्म और इंसानियत में क्या चुनेगे आप ?
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रतलाम: भारतीय संस्कृति में धर्मभीरु रही है. किसी भी अन्य चीज से धर्म को लोगों ने ज्यादा महत्व दिया है. क्योकि कही न कही धर्म का भारतीय संस्कृति में बढ़ा योग्यदान है . जिसे कतई झुठलाया नहीं जा सकता. जिस धर्म, संप्रदाय या मत-पंथ-परंपरा में इंसानियत की कोई बात नहीं, वह धर्म नहीं, धर्म के नाम पर धोखा है. इंसानियत की उपेक्षा करके केवल पूजा-पाठ या क्रियाकांड के सहारे धार्मिकता का मुखौटा पहनने वाले व्यक्ति धर्म का स्वाद नहीं चख पाते हैं. धर्म का पहला पायदान ही इंसानियत का भाव है.

यह बात शांत क्रांति संघ के आचार्यश्री विजयराजजी ने धर्मानुरागियों को दिए संदेश में कही गई है. सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में विराजित आचार्यश्री के मुताबिक इंसानियत बचेगी तो ही धर्म, संप्रदाय बचेंगे, इंसान ही नहीं रहा तो धर्म-संप्रदाय कहां रहेंगे. प्रत्येक इंसान, गुण और कर्म से इंसान बने, यही आज के समय का तकाजा है. इंसान का मोल उसके भीतर बसी इंसानियत से ही है. अगर उसकी इंसानियत जिंदा है, तो वह सच्चे अर्थों में इंसान है. डॉक्टर, वकील, अध्यापक बनना आसान है, लेकिन अच्छा इंसान बनना कठिन है. आचार्यश्री ने कहा कि विषम और विकट परिस्थितियों में ही इंसानियत की परीक्षा होती है. किसी की आंख के आंसू पौंछना और आंख में आंसू नहीं आने देने का कार्य इंसानियत की कसौटी है. ये कार्य तभी हो सकते हैं, जब इंसान के भीतर भाईचारा पलता है. भाईचारे से ही इंसानियत सुरक्षति रहती है. विडम्बना है कि आज इंसान के पास पैसा बढ़ा है और प्रेम घटा है. संपत्ति बढ़ी है और सत्य घटा है. साधन-सुविधाएं बढ़ी है और संतोष तथा शांति घटी है.  

हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि इंसानियत सत्य की किरण है, धर्म की बुनियाद है और मजहब से ऊंची है. वर्तमान में अन्ना और धन की कमी नहीं है, मात्र इंसानियत की कमी है. इससे मानव मन छोटा हो जाता है और छोटे मन से कभी बड़ा काम नहीं होता. बड़े काम बड़े मन वाले ही करते हैं. इसलिए अपने मन को बड़ा बनाइयें, क्योंकि इसी बड़े मन में भगवान रहते हैं. मानवता जब-जब ही संकट में घिरती है, तब-तब बड़े मन वाले आगे आते हैं और मानवता को बचाते हैं. इंसानियत तेरा-मेरा, अपना-पराया नहीं देखती, वह सिर्फ अपना कर्तव्य देखती है. इंसानियत को सामने रखकर काम करने वाले नेताओं का स्वयं ही नहीं समाज और देश का मस्तक भी उंचा हो जाता है.

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