प्याज की कीमतों में एक बार फिर से इजाफा होने के आसार देखे गए है. खुदरा महंगाई में गिरावट की उम्मीद देखी जा रही थी लेकिन हुआ बिल्कुल इसके विपरीत है. जून में इसमें 5.40 फीसदी पर पहुंचने और असमय बारिश से हुई फसलो के नुकसान की वजह से 10 से 15 फीसदी वृद्धि की आशंका है. इस बढ़ोतरी से आम आदमी में बजट बिगड़ने के आसार देखे गए है. वाणिज्य एवं उद्योग संगठन Assocham की रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके अलावा प्याज की थोक और खुदरा कीमत के अंतर को काम करने के प्रयास किये जाने चाहिए. विभिन्न थोक मंडियों में प्याज 1800 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा जा रहा है जबकि खुदरा विक्रेता इसे 30 से 35 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेच रहे है.
Assocham ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि प्याज की कीमत में इस स्तर से और ज्यादा वृद्धि उपभोक्त मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा महंगाई में इजाफा कर सकता है. प्याज का प्रयोग प्रत्येक परिवार में आवशयक वस्तु के रूप में किया जाता है और प्याज के दाम में बढ़ोतरी होना आम जनता के साथ ही राजनीतिक पार्टियों के लिए भी परेशानियों का सबब बन गया है.
Assocham की रिपोर्ट के अनुसार , पैदावार घटने से भंडार में भी कमी आने की आशंका है. इसलिए, उपभोक्तओं तक पहुंचने से पहले प्याज के बेहतर भंडारण की आवश्यकता है. देश में प्याज की कुल पैदावार में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात का दो-तिहाई से ज्यादा योगदान है. इसमें अकेले महाराष्ट्र में 30 फ़ीसदी प्याज की पैदावार होती है. रिपोर्ट के अनुसार, मौसम और कीमत के आधार पर देश में प्याज की खपत 80 लाख टन से 1.2 करोड़ टन के लगभग है. इससे हर महीने खपत 10 लाख टन और सालाना खपत का औसत एक करोड़ 20 लाख टन तक होती है. इस प्रकार भंडारण की सुचारू व्यवस्था न होने और सड़ने-गलने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुये देश में हर साल करीब 1.4 करोड़ टन प्याज की आवश्यकता होती है.