आखिर यह विश्व कब से अस्तित्व में है, भगवान कहां रहते हैं, वे क्या कहते हैं, भगवान हैं तो वे हमें दिखते क्यों नहीं है। हमें उस ईश्वर ने बनाया। उसी ने यह कायनात बनाई। धरती को तपाने और रोशनी देने की शक्ति भी उसी ने विकसित की लेकिन आखिर वह है कहां। कोई कहता है वह मंदिर में है, कोई कहता है मस्जिद में, कोई कहता है सुबह 5.30 बजे वह उठता है तो उसका अभिषेक किया जाता है कोई कहता है वह दिन में सो जाता है इसलिए मंदिर के पट बंद हो जाते हैं। तो कोई कहता है वह अपनी माया से हर समय जाग रहा है और हमें देख रहा है। कभी - कभी आपको यह सवाल भी कौंधता होगा कि आखिर जिस ईश्वर ने हमें बनाया है वह आया कहां से। उसे किसने बनाया। मगर यहां आकर हमारी सोच को जवाब नहीं सूझता। सवालों के अंत के बाद भी हम अनंत को समझने की गहराई में खो जाते हैं और फिर सवाल दर सवाल उलझते रहते हैं।
ईश्वर कहां रहता है यह इस युग में तो किसी ने नहीं देखा है लेकिन इतना जरूर है कि कोई शक्ति है जो इस सृष्टि का संचालन कर रही है। सभी धर्मों के अनुयायी उसकी ईबादत में झुक जाते हैं। आखिर उसका कद है ही इतना बड़ा। उसकी माया में वह ममता, करूणा और मोह समाया हुआ है। जो सभी बंधनों से मुक्त कर देता है लेकिन संसार के सभी धर्म अलग - अलग माध्यम से एक ही बात कहते हैं। वह है शांति की, सन्मार्ग की बात। इन दिनों देश में रमजान माह की तैयारी हो रही है, दूसरी ओर हिंदूओं द्वारा चार्तुमास मनाया जाता है। वर्षाकाल प्रारंभ होने के साथ ही हिंदू और जैन धर्मों में चार माह तक सत्संग की शरण लेने की बात कही जाती है। इस दौरान नियम, आहार, प्रत्याहार पर ध्यान दिया जाता है।
इसी तरह मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा एक माह तक रोज़ा रखकर ख़ुदा की ईबादत की जाती है। इस ईबादत में खुद को कई तरह की बंदिशों में रखकर शरीर पर नियंत्रण रखा जाता है। साथ ही अपनी बुराईयों को अलग कर पांच समय खुदा की ईबादत में नमाज़ अता करने की बात कही जाती है। इस माध्यम से खान-पान के साथ इंद्रीय संयम और अपरिग्रह की बात कही जाती है। वैसे ही हिंदू और बौद्ध धर्म में भी आवश्यकता से अधिक संगह करने की बात को वर्जित कहा गया है।
साथ ही मौसम अनुकूल आहार - विहार के साथ स्वयं की शारीरीक प्रकृति निर्मित करने की बात कही गई है जिससे इंद्रियां मानव पर हावी न हों। यहां यह बात गौर करने योग्य है कि इंद्रियों के नियंत्रण की बात कही गई है जबकि इंद्रियों के दमन को श्रीमद्भगवद् गीता में पाप की तरह कहा गया है। संसार के सभी धर्म अलग - अलग मार्ग से एक ही बात कहते हैं वह है मानवता का मार्ग, सद्मार्ग। जहां हिंदू धर्म और इसी की शाखाओं के तौर पर जाने जाने वाले धर्मों की बात है। क्षमा को वीर का सबसे बड़ा आभूषण माना गया है। अपनी भूलों के लिए क्षमा मांगने वाले को भी बहुत बड़ा कहा गया है।
कहा गया है कि गलतियों को सुधार लेने वाला ही इंसान होता है। इसी तरह मुस्लिम धर्म में भी रमजान माह से अपनी भूलों को सुधारने का एक अवसर अकीदतमंद को हासिल होना बताया गया है। संसार के सभी धर्मों में शांति, परोपकार और अच्छाई की बात कही गई है। ये सभी धर्म उस नदी के दो पाटों की तरह है जो साथ चलने के बाद समुद्र या किसी बड़ी नदी में मिलने के दौरान एक होकर जलधारा बन जाते हैं। यह जलधारा बेहद पवित्र और शुद्ध होती है, जिसके जल में कभी सड़ांध नहीं होती।