22 अप्रेल से मध्यप्रदेश के उज्जैन में अमृत का मेला कहा जाने वाला कुम्भ मेला लगने वाला है। पुरे देश के लोग इस अवसर का बड़ी ही बेसब्री से इन्जार कर रहे है लेकिन कुम्भ में सबसे अधिक महत्त्व साधुओ का ही होता है और खास बात तो यह है की कुम्भ के बहुत समय पहले से ही यहाँ साधुओ का आना शुरू हो गया है और इनके द्वारा धुनी भी जलाई जा चुकी है कुम्भ में आने वाले साधुओ की धुनी का अपना एक अलग ही महत्त्व होता है।
1.ऐसी मान्यता साधु धुनी के पास बैठकर कोई बात कहता है,कोई आशीर्वाद देता है तो वह जरूर पूरा होता है।
2.किसी भी साधु द्वारा जलाई गई धुनी कोई साधारण चीज़ नहीं होती है। इसे सिद्ध मंत्रो से शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है।
3.कोई भी साधु धुनी अकेले नहीं जला सकता। इसके लिए उसके गुरु का होना जरुरी होता है।
4. धुनी हमेशा जलती रहे, यह जिम्मेदारी उसी साधु की होती है। इस कारण उसे हमेशा धुनी के आसपास रहना पड़ता है।
5. अगर किसी कारण साधु कहीं जाता है तो उस समय धुनी के पास उसका कोई सेवक या शिष्य रहता है।
6.साधुओं के पास जो चिमटा होता है, वह वास्तव में धुनी की सेवा के लिए होता है। उस चिमटे का कोई और उपयोग नहीं किया जाता है।
7.नागा साधु जब यात्रा पर जाते है, तब धुनी नहीं होती,लेकिन जैसे ही कहीं डेरा जमाते है,वहां सबसे पहले धुनी जलाते है।