वृद्धा जीवन की विरह व्यथा
वृद्धा जीवन की विरह व्यथा
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मानव के जीवन की चारों अवस्थाओं में यह चौथी अवस्था (वृद्धा ) जो की जीवन की अंतिम अवस्था होती है. इस अवस्था में व्यक्ति को विशेष रूप से किसी न किसी के सहारे की आवश्यकता होती है .

इसी के चलते हमारे लिए हमारे पूर्वज जाने क्या क्या सुविधाये जुटाते है. हमारे भविष्य के लिए बहुत कुछ कर जाते है वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते करते अपने जीवन की सांध्य बेला में पहुंच जाते है. प्रत्येक मानव बाल्यावस्था के पश्चात होश संभालते ही वह अपने आप को अनेक जिम्मेदारियों से घिरा हुआ पाता है। इन जिम्मेदारियों का एक एक कर सामना करने के पश्चात जब उसे लगता है. कि अब उसकी सारी समस्याओं का निवारण हो चुका है तब तक वह एक ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है जो उसके जीवन की सांध्य बेला या दूसरे शब्दों में कहा जाये तो वृद्धावस्था ही होती है। 

जीवन की इस अवस्था में मनुष्य को आराम की आवश्यकता होती है, उसे किसी न किसी के सहारे की आवश्यकता होती है। इस वृद्ध अवस्था में हर किसी को भरोषा सा होता है. की उसकी संतान उसका साथ देखी उसकी सेवा करेगी .व्यक्ति अपनी सन्तान की हर जरूरत को पूरा करता है. उसके प्रत्येक सुख-दुःख का जीवन भर ध्यान रखा। अपनी संतान के लिए जाने कितने उपाय व उनकी जरूतों के लिए अत्यधिक परिश्रम करता है . 

उस माँ -बाप के हाथ जो जीवन भर हमें सुरक्षा और संरक्षण देते है हमारी ऊँगली पकड़ कर हमें चलना सिखाते हैं, और जब उस माँ बाप को सहारे की जरुरत होती है. तब हम उस वक्त अपने हाथ पीछे क्यों कर लेते हैं? और उन वृद्ध माँ बाप की बातों को या उनकी जरूरतों को अनसुना सा कर देते है .यदि हम एक हों या चार माँ बाप तो सबको पाल लेते है .पर हम केवल उन दोनों माँ - बाप को सहारा देने में कतराते है। ये नहीं जानते की हम भी कभी वृद्ध होंगे हमारे भी यही दिन होगें हमें भी सहारे की जरुरत होगी .

जीवन की इस अवस्था में पहुँचकर घर के बुजुर्ग अपने आप को अलग-अलग सा क्यों महसूस करने लगते हैं? हमारे बुजुर्ग हमारे लिये कितना कुछ कर जाते है. और यदि न किया हो तो भी हमारा फर्ज जिसे हम मूल कर्तव्य भी कहते है.वह होता है की हम उनकी सेवा करें . हमें चाहिए की हम उनके जीवन का सहारा बने उनकी प्रत्येक समस्या को समझे.

हम कितना भी धन दौलत कमा लें ,सुख सुविधा जुटा ले पर यदि हमारे बुजुर्ग हमसे दुखी हों या हम उनकी सेवा न कर रहे हो तो ये सब धन दौलत व्यर्थ है .इसका कोई मूल्य नहीं और आप इस जीवन के साथ साथ अगले जन्म में भी मुक्त नहीं हो सकते चाहे आप कितने तीर्थ , धर्म कर्म ,पूजा - पाठ कर लो पर यदि माँ- बाप आपसे दुखी हो या आप उनकी सेवा न कर रहे हो तो आपका जीवन व्यर्थ है.

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