अब रेप करने वालों को होगी फांसी, जानिए क्या है अपराजिता बिल

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पश्चिम बंगाल विधानसभा ने मंगलवार को सर्वसम्मति से एक नया दुष्कर्म रोधी विधेयक पारित किया है। इस विधेयक में दुष्कर्म की पीड़िता की मौत या उसे 'कोमा' जैसी स्थिति में जाने पर दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। विधानसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग की, जिन्होंने महिलाओं की सुरक्षा के लिए प्रभावी कानून लागू नहीं किए हैं।

विधेयक का नाम और उद्देश्य

इस विधेयक का नाम है- 'अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) विधेयक 2024'। इसका उद्देश्य दुष्कर्म और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को लागू करना और महिलाओं व बच्चों की सुरक्षा को मजबूत करना है।

विधेयक लाने का कारण

9 अगस्त को कोलकाता के सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक महिला चिकित्सक के साथ कथित दुष्कर्म और हत्या की घटना के बाद पूरे देश में नाराजगी फैल गई। इसके विरोध में डॉक्टर सड़क पर उतर आए थे और बंगाल में भी व्यापक प्रदर्शन हुए थे। इसी वजह से विधानसभा ने यह विधेयक पेश और पारित करने के लिए एक विशेष सत्र बुलाया था।

विधेयक के मुख्य प्रावधान

  1. भारतीय न्याय संहिता में संशोधन: विधेयक भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 की धारा 64, 66, 70(1), 71, 72(1), 73, 124(1) और 124(2) में संशोधन करता है। इसमें दुष्कर्म, दुष्कर्म और हत्या, सामूहिक दुष्कर्म, बार-बार अपराध करने वालों, पीड़िता की पहचान उजागर करने और तेजाब हमलों के लिए सजा का प्रावधान है।

  2. दुष्कर्म की सजा: बीएनएस की धारा 64 के तहत दुष्कर्म के दोषी को कम से कम 10 साल की कठोर सजा दी जाएगी। बंगाल के विधेयक में इसे आजीवन कारावास या मौत की सजा तक बढ़ा दिया गया है।

  3. कोमा या मृत्यु के मामले: बीएनएस की धारा 66 में संशोधन करते हुए, दुष्कर्म के कारण पीड़िता की मौत या उसे कोमा में जाने पर दोषी को मृत्युदंड देने का प्रावधान किया गया है।

  4. सामूहिक दुष्कर्म: बीएनएस की धारा 70 में संशोधन कर सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान किया गया है।

  5. पीड़िता की पहचान उजागर करने पर सजा: यौन हिंसा की शिकार महिला की पहचान सार्वजनिक करने के मामलों में सजा को कड़ा किया गया है। बीएनएस में इसके लिए दो साल की जेल की सजा का प्रावधान था, जबकि अपराजिता विधेयक में इसे तीन से पांच साल कर दिया गया है।

  6. POCSO अधिनियम में संशोधन: बच्चों के यौन शोषण मामलों में सजा को सख्त किया गया है। विधेयक में विशेष अदालतों और टास्क फोर्स के गठन का भी प्रावधान है।

  7. अधिनियम की धारा में बदलाव: दुष्कर्म के दोषियों के उम्र पर आधारित सजा की धारा को हटाया गया है, जिससे सजा सार्वभौमिक हो जाएगी।

अन्य राज्यों में समान विधेयक

इससे पहले आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र ने भी दुष्कर्म और सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में मृत्युदंड को अनिवार्य करने वाले विधेयक पारित किए थे, लेकिन उन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है।

अगला कदम

विधेयक को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के समर्थन के साथ पारित किया गया है, लेकिन इसे लागू करने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होगी। राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना विधेयक लागू नहीं हो सकता, और यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस विधेयक को मान्यता देती है या नहीं।

भाजपा का रुख

भाजपा विधायकों ने विधेयक का समर्थन किया है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने आरोप लगाया कि यह विधेयक केवल कोलकाता में हुए अपराध पर पर्दा डालने और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए पेश किया गया है। भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग भी की है।

ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उन्होंने केंद्र से मौजूदा कानूनों में संशोधन की अपील की थी, लेकिन केंद्र ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई। तृणमूल के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर बताया कि देश में हर 15 मिनट में बलात्कार की एक घटना हो रही है, जिससे ऐसे कानून की मांग बढ़ गई है। उन्होंने केंद्र सरकार से त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए अध्यादेश या बीएनएसएस संशोधन की अपील की है।

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