style="text-align: justify;">बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि ने देश के अन्नदाता की कमर तोड़कर रख दी है। किसान बर्बाद हो चुके है, खाने को लाले तक पड़ गये होंगे, इसमें कोई संशय नहीं है। क्योकि जिस तरह से किसानों की स्थिति सामने आई है, उससे यह प्रतीत होता है कि बर्बादी के बाद किसानों को न केवल आर्थिक तौर पर सहायता की जरूरत है अपितु उन्हें मानसिक या दिली रूप से भी दिलासा देने की आवश्यकता है।
लेकिन यह कहने में गुरेज नहीं है कि राजनीति के लोगों ने किसानों को भी राजनीति की चाश्नी में डुबो दिया है, किसानों के नाम पर राजनीति की जा रही है और हर कोई अपने आपको किसानों का हितैषी सिद्ध करने में जुटा हुआ है।
यर्थाथ में यह सभी जानते है कि इन सबके पीछे सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक स्वार्थ है और स्वार्थ की पूर्ति होते ही किसानों को भी दरकिनार कर दिया जायेगा, बावजूद इसके उम्मीद तो है कि यह नहीं तो वह या वह नही तो यह किसानों के दर्द को बांटेगा। हाल ही में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किसानों के जख्म पर राहत का मरहम लगाने का प्रयास किया है।
मोदी का कहना है कि पचास प्रतिशत फसल नुकसानी के स्थान पर 33 प्रतिशत नुकसानी पर भी सरकारी तौर पर मुआवजा दिया जायेगा, इसके अलावा मोदी सरकार ने मुआवजा राशि में भी डेढ़ गुना अधिक बढ़ोतरी की है।
यह सुनकर प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि चलो मोदी सरकार ने किसानों के लिये सोचा तो सही और वह भी ऐसे समय जब किसानों को आवश्यकता है। अब यह बात दीगर है कि घोषणा को अमली जामा कब तक पहनाया जाता है या फिर उपर से चलकर संबंधितों के पास पहुंचने वाली मुआवजा राशि कितनी रह जाती है अथवा सभी किसानों को लाभ मिलता है या नहीं। यदि सरकार चाहे तो सब कुछ संभव है, लेकिन थोथी घोषणाओं से कुछ होगा नहीं।