उत्तर प्रदेश / इलाहाबाद : एक अदालत ने स्वामी वासुदेवानन्द "शंकराचार्य" को अपने पद के लिए अयोग्य बताते हुए कहा है की, इनकी नियुक्ति पूरी तरह से गैरकानूनी है। इन्हें आजीवन शंकराचार्य का प्रतीक चिन्ह, छात्र एवं दंड धारण करने पर रोक लगा दी जाती है तथा शंकराचार्य के रूप में वह कोई कार्य न करें। करीब 28 साल तक चले इस मुकदमे के बाद यह आदेश सिविल जज (वरिष्ठ श्रेणी) गोपाल उपाध्याय ने 308 पेज में दिया। कोर्ट ने स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती की 7 दिसम्बर, 1973 को की गई भर्ती को पूरी तरह से वैध व नियमों के विरुद्ध माना है।
कोर्ट ने कहा कि स्वामी स्वरूपानन्द ही शंकराचार्य पद पर की गई नियुक्ति के काबिल है तथा स्वामी वासुदेवानन्द आवश्यक कव्लीफिकेशन न होने के कारण काबिल नहीं है क्योंकि वे महानुशासन तथा मठ नियमावली में दी गई आवश्यक योग्यताओं को पूरा नहीं करते है। कोर्ट ने 14 नवम्बर 1989 को वासुदेवानन्द की शंकराचार्य पर हुई नियुक्ति को अवैध और अविधिपूर्ण माना और कहा कि इनके द्वारा जिस वसीयत को आधार बनाकर दावा किया गया है।
वह कूटरचित है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वासुदेवानन्द दंडी स्वामी नहीं हैं। क्योंकि 13 नवम्बर 1989 तक संन्यास के बाद सोमनाथ द्विवेदी नाम से नौकरी करते रहे हैं। इसलिए आवश्यक अर्हता एवं योग्यता नहीं रखते। कोर्ट ने स्वरूपानन्द द्वारा दाखिल मुकदमे को स्वीकार करके 1987 से चली आ रही कानूनी लड़ाई को निस्तारण कर दिया।