मंत्रालय को नहीं है किसानो के आत्महत्या की खबर
मंत्रालय को नहीं है किसानो के आत्महत्या की खबर
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नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक, विगत 15 वर्षो में बिहार और राजस्थान में कृषि संबंधित कारणों से एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है. लेकिन साथ ही यह भी देखने में आया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी आंकड़ों में बिल्कुल विपरीत बात कही गई है. जी हाँ, आंकड़ों में NCRB के अनुसार वर्ष 2000 और 2014 के बीच राजस्थान में 7,927 और बिहार में 975 किसानों ने आत्महत्या की है. इस मामले में कृषि विभाग ने सूचना का अधिकार कानून के तहत यह बताया है कि दोनों राज्यों में किसी भी किसान के द्वारा आत्महत्या नहीं की गई है और साथ ही विभाग ने भी आत्महत्या का आँकड़ा ना होने का कोई कारण नहीं बताया है. कृषि विभाग के मुताबिक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इस अवधि में कृषि संबंधित कारणों से क्रमश: सिर्फ चार और एक मौत हुई है.

जबकि NCRB के मुताबिक, गत 15 सालों में मध्य प्रदेश में 21,138 किसानों ने और उत्तर प्रदेश में 8,531 किसानों ने आत्महत्या की है. कृषि विभाग के मुताबिक, ओडिशा, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, त्रिपुरा, असम, झारखंड और हिमाचल प्रदेश में भी 10 से कम किसानों ने आत्महत्या की है. विभाग ने यह भी बताया है कि गुजरात और छत्तीसगढ़ में क्रमश: पांच और एक मौत हुई है. NCRB के आंकड़े के मुताबिक, इस दौरान छत्तीसगढ़ में 15,099, पश्चिम बंगाल में 13,098, गुजरात में 8,309, असम में 3,908, ओडिशा में 3,439, झारखंड में 1,197, हिमाचल प्रदेश में 669, त्रिपुरा में 430 और दिल्ली में 191 किसानों ने आत्महत्याएं की.

केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने इस साल जुलाई में राज्यसभा में कहा था कि प्यार और नपुंसकता जैसे मामलों के कारण किसान आत्महत्या करते हैं. जिस बात के लिए उनकी तीखी आलोचना भी हुई थी. विभाग NCRB के आंकड़े पर यह कह सकता है कि किसान बैंक का कर्ज नहीं चुका पाने, आर्थिक स्थिति में बदलाव, वैवाहिक जीवन की समस्या, बच्चे का नहीं होना, बीमारी, प्रियजन की मृत्यु, दहेज विवाद तथा अन्य मुद्दों के कारण आत्महत्या करते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, हालांकि इन सभी समस्याओं का संबंध येन-केन प्रकारेण कृषि से है.

तमिलनाडु के मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (एमआईडीएस) के पूर्व प्रोफेसर के. नागराज ने कहा है कि, "राज्यों में दर्ज किसानों की आत्महत्या के मामलों में काफी विसंगति है. देश में बड़ी संख्या में किसानों के पास जमीन नहीं है. वे किसी दूसरे की जमीन पर काम करते हैं. इन लोगों की आत्महत्या को सरकार दर्ज नहीं करती है." उन्होंने कहा कि सरकार इसलिए भी मामला दर्ज नहीं करती है, क्योंकि इससे उन्हें मुआवजा देना होगा. वे इसलिए भी आंकड़े घटाकर दिखाते हैं, ताकि स्थिति को बेहतर दिखाया जा सके. विभाग के आंकड़े के मुतााबिक, जिन थोड़े राज्यों में बड़ी संख्या में आत्महत्याएं हुई हैं, उनमें महाराष्ट्र (7,678), आंध्र प्रदेश (2,259), कर्नाटक (1,484) और केरल (948) शामिल हैं.

तमिलनाडु में 13 आत्महत्याएं दर्ज की गईं. जबकि NCRB के मुताबिक, महाराष्ट्र में 54,941, आंध्र प्रदेश में 30,752, कर्नाटक में 30,604, केरल में 16,088 और तमिलनाडु में 12,373 किसानों ने आत्महत्या की है. NCRB के मुताबिक, 2000 से 2014 के बीच कुल 2,38,658 किसानों ने आत्महत्या की है. कृषि विभाग के आंकड़े के मुताबिक, हालांकि यह संख्या 18,271 है, जो आठ फीसदी से भी कम है. इन आंकड़ों से साफ है कि प्रणाली में कुछ गंभीर खामी है.

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