पेरिस : फ्रांस में हो रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को लेकर भारत ने अपनी ओर से तर्क सामने रखा है। जिसमें भारत द्वारा कहा गया है कि पर्यावरण सहेजने के नाम पर भारत के विकास को रोकना सही नहीं है। भारत द्वारा स्पष्ट कर दिया गया है कि वह सदैव की तरह ही अमीर देशों की नहीं चलने देगा। इस मामले में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि भारत इस बात को तय करेगा कि पेरिस सम्मेलन से प्रतिवर्ष की ही तरह देश झूठी उम्मीद लेकर न लौटे यही नहीं अमीर देश स्वयं द्वारा पर्यावरण न सहेजने के कारणों को भुगते।
केंद्रीय मंत्री जावड़ेकर ने कहा कि पेरिस में सम्मेलन में सारे देश एक सवाल के दायरे में खड़े हैं। इसका कोई हल नहीं नज़र आ रहा है। उनका कहना था कि भारत अपने सवा अरब लोगों का भरण - पौषण और उनके विकास की बात का विचार भी कर रहा है। यह उसकी जरूरत है। मगर अमीर देश और विकसित देशों का रवैया अलग है। इन देशों का यह रवैया भारत को स्वीकृत नहीं है। भारत को यह बात शायद इसलिए करना पड़ गई क्योंकि वे पहले के दो सप्ताह में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में पहला सप्ताह पूरा होने पर 5 दिसंबर को ड्राफ्ट स्वीकार कर लिया गया।
यह बात अमीर देशों के अडियल रवैये को दर्शा रही है। अमीर देशों के रवैये अमेरिका, योरप, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों की ओर भारत ने इशारा करते हुए कहा कि जिस देश ने जितना अधिक कार्बन छोड़ा है। उसकी उतनी ही ज़्यादा जवाबदारी बनती है। वातावरण में करीब 50 प्रतिशत कार्बन अमेरिका और योरोप ही जिम्मेदार हैं।
यह देश अपनी जवाबदारी से बचने का प्रयास कर रहे हैं। ऐतिहासिक तौर पर इसमें प्रदूषण की बात नहीं की जा रही है। ग्रीन फंड में पैसा देने के नाम पर अमीर और विकसित देश बहानेबाजी करने में लगे हैं। उनका कहना था कि इन देशों द्वारा भारत से विकासशील कहलाने का विशेषाधिकार छोड़ने की बात कही जा रही है। इस तरह के नए ड्राफ्ट पर सोमवार से चर्चा होने की बात कही गई है। उल्लेखनीय है कि 196 देशों के मंत्री किसी निष्कर्ष पर पहुंचेंगे। भारत के लिए यह सम्मेलन कुछ मुश्किलभरा होगा।