दक्षिण भारत में नहीं मनाया जाता होली का पर्व, बहुत खास है वजह
दक्षिण भारत में नहीं मनाया जाता होली का पर्व, बहुत खास है वजह
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होली का पर्व रंगों का पर्व माना जाता है। यह पर्व बहुत ही ख़ास है और इसे अलग-अलग रंगों के सजाया गया है। हम सभी जानते हैं कि होली का पर्व हर जगह मनाया जाता है लेकिन दक्षिण भाग में होली का रंग हल्का पड़ता चला जाता है। यहाँ जैसे-जैसे होली का दिन करीब आता है वैसे-वैसे शोक मनाया जाता है। जी दरअसल दक्षिण भारत में होली के दिन शोक मनाया जाता है और यहाँ के कई शहरों में होली का जश्न नहीं होता है। इसके पीछे एक कहानी है जो हम आपको बताने जा रहे हैं।

जी दरअसल दक्षिण भारत में नए समाज की उन्नति में दो खास तत्व हमेशा रहे हैं और वह है युद्ध और प्रेम। दर्शनशास्त्र के मुताबिक युद्ध से सबकुछ नहीं जीता जा सकता है, लेकिन प्रेम एक ऐसा तत्व है, जिससे आप हार जाने के बाद भी विजेता बन सकते हैं। जी दरअसल दक्षिण भारतीय संस्कृति में युद्ध और प्रेम का यह संतुलन दो देवताओं की विशेष मान्यताओं में दिखाई देता है। यहां कार्तिकेय का पूजन होता है जो मुरुगन कहलाते हैं। जी दरअसल मुरुगन शत्रुओं के विनाशक हैं। वहीं यहां दूसरे भगवान जिनका पूजन होता है वह कामदेव है जो कि प्रेम के देवता हैं। आपको दक्षिण भारत के मंदिरों में मुरुगन और कामदेव की प्रतिमाएं हर जगह मिल जाएंगीं। कामदेव का महत्व होने के चलते दक्षिण भारत में मुन्नार, महाबलीपुरम और भी कई शहर होली का त्योहार नहीं मनाते। यहाँ होलाष्टक के दौरान भी दुःख का माहौल होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका जिक्र शिव महापुराण में मिलता है। आइए बताते हैं।

कथा- राक्षस तारकासुर को वरदान था कि उसका वध शिव पुत्र के हाथों से ही होगा। दक्ष यज्ञ में सती के दाह के बाद देवताओं को शिवपुत्र के जन्म की आस ही नहीं बची थी, लेकिन बाद में महादेव का माता पार्वती से विवाह हुआ तो एक बार फिर देवताओं को तारकासुर के वध होने की उम्मीद जाग गई। दूसरी ओर तारकासुर, जिसके अत्याचार काफी बढ़ गए थे उसने भी अपना जीवन बचाने के लिए कुचाल करना शुरू किया। इन सबसे अलग महादेव, देवी पार्वती से विवाह होते ही एक बार फिर ध्यान अवस्था में चले गए। इससे देवताओं को निराशा होने लगी। तब उन्होंने कामदेव को इसलिए भेजा कि वह वसंत ऋतु के बाण लेकर जाएं और देवी रति के साथ सम्मोहन नृत्य करके महादेव को जगाएं। ध्यान से बाहर लाएं। कामदेव ने वसंत के कई बाण मारे जिनमें से एक तीर महादेव के त्रिनेत्र पर लगा। उनकी तीसरी आंख खुल गई और उससे निकली ज्वाला में कामदेव तुरंत भस्म हो गए। कहते हैं कि कामदेव ने लगातार आठ दिन तक महादेव की समाधि तोड़ने की कोशिश की थी। इसलिए इन आठ दिनों को बिल्कुल भी शुभ नहीं माना जाता है। वहीं जिस दिन वह भस्म हुए वह होली का दिन था इसी के चलते दक्षिण भारत में होली पर कोई उत्साह देखने को नहीं मिलता है।

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