मदर्स डे : मां बनने की कोई उम्र-सीमा नहीं
मदर्स डे : मां बनने की कोई उम्र-सीमा नहीं
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नई दिल्ली : माँ एक ऐसा शब्द जिसे सुनकर एक अजीब सा शुकुन मिलता है, एक ऐसा शब्द जिसके बारे में जितना बताया जाए और बोला जाए काम है, मदर्स डे (10 मई) के मौके पर यह जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि आज के दौर में मां बनने के लिए कोई उम्र-सीमा नहीं होती, महिलाओं को मातृत्व सुख पाने की उम्मीद कभी नहीं छोड़नी चाहिए। यह कहना है बांझपन विशेषज्ञ डॉ. काबेरी बैनर्जी का। दिल्ली के एडवांस्ड फर्टीलिटी एंड गॉयनिकोलॉजी सेंटर की क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. काबेरी बैनर्जी ने कहा कि औरतों में गर्भधारण करने में देरी के कई कारण हो सकते हैं। लंबी बीमारी या मनचाहा जीवनसाथी न मिलना देरी के कारण हो सकते हैं, उन्होंने बताया कि कई फर्टीलिटी तकनीके हैं, जैसे कि आर्टिफीशियल इन्सेमीनेशन, इन वीटरो फर्टीलाइजेशन, गेमेट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर, इंटरासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन, डोनर एग्स और एमब्रीओस जैसी तकनीकें उपलब्ध हैं, जो लंबे समय से चल रही महिला व पुरुष की प्रजनन समस्या का निदान कर सकती हैं। इनकी सफलता की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं और बांझपन की पुख्ता जांच हो जाने के 10-15 सालों के बाद भी गर्भधारण संभव बना सकती हैं। 

डॉ. काबेरी ने बताया है कि वैसे तो मैं यही सलाह दूंगी कि महिलाओं को अपने प्राकृति प्रजनन चक्र के अनुसार गर्भधारण करने को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह सबसे बेहतर विकल्प है। लेकिन उन जोड़ों के लिए, जिनमें देर से शादी होने की वजह से गर्भधारण करने की कोशिशें असफल रह चुकी हैं, उनको मैं यही सलाह दूंगी कि वे उम्मीद बिल्कुल न छोड़ें, उन्होंने बताया है कि मैंने ऐसा केस भी देखा है, जब मरीज 10-15 साल से बांझपन से जूझ रही महिला ने 40 की उम्र में स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है।" डॉ. काबेरी ने कहा हम मरीज को उनकी केस हिस्टरी की जांच के बाद उनके लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद तकनीक की सलाह देते हैं। अगर कुछ भी संभव न हो तो हम सेरोगेसी की सलाह देते हैं। इसलिए मदर्स डे के मौके पर मैं महिलाओं को भरोसा दिलाना चाहूंगी कि उम्र और हालात मां बनने में रुकावट नहीं हो सकते, उन्होंने कहा कि एक मरीज पूजा (बदला हुआ नाम) जिसकी उम्र 42 साल थी, वह 15 साल से बांझपन से जूझ रही थी। तब तक वह चार बार आईवीएफ और एक बार आईवीएफ विद डोनर एग प्रणाली से गर्भधारण करने में असफल रह चुकी थी। आकलन के बाद यह फैसला किया गया कि उनके लिए 'फ्रोजन एम्ब्रियो ट्रांस्फर' सबसे बेहतर विकल्प रहेगा। यह प्रणाली उन पर अपनाई गई। दो हफ्तों बाद उनके गर्भधारण की रिपोर्ट सकारात्मक आई। 

आज वह जुड़वा लड़कों की मां है, डॉ. कावेरी ने बताया, "37 वर्षीय लक्ष्मी (बदला हुआ नाम) का मामला भी कुछ ऐसा ही था, वह 10 साल से बांझपन से पीड़ित थीं। वह पांच बार आईवीएफ प्रणाली से गर्भधारण करने में असफल रह चुकी थीं। मेरे क्लीनिक पर लैप्रोस्कोपी और हिस्टरस्कोपी के साथ उनकी बच्चेदानी की झिल्ली निकाली गई और उसके बाद टीबी इन्फेक्शन का इलाज शुरू किया गया। एम्ब्रियो टरांस्फर के दो हफ्तों बाद उनके गर्भधारण की रिपोर्ट सकारात्मक आई, दिल्ली के कई बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों में वरिष्ठ आईवीएफ विशेषज्ञ के तौर पर कार्य कर चुकीं और 3000 से भी ज्यादा आईवीएफ साइकल करा चुकीं डॉ. काबेरी बनर्जी से परामर्श के लिए पहले मिस पारोमिता सरकार से फोन नंबर 9650431542 पर संपर्क किया जा सकता है।

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