निर्भया के गुनहगारों की फांसी में देरी की वजह से सुप्रीम ने नया दिशानिर्देश तय किया है. ताकि भविष्य में कानूनी दांव पेचों का गलत इस्तेमाल न हो सके. शीर्ष अदालत ने मौत की सजा के मामले में हाईकोर्ट के फैसले के छह माह के भीतर अपील पर सुनवाई तय कर दी है. शुक्रवार को सामने आए सुप्रीम कोर्ट के एक सर्कुलर में कहा गया है कि किसी मामले में जब हाईकोर्ट मौत की सजा की पुष्टि करता है या उसे बरकरार रखता है और सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई की अपनी सहमति जताता है तो इस आपराधिक अपील पर सहमति की तारीख से छह माह के भीतर मामले को शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाएगा, भले ही यह अपील तैयार हो पाई हो या नहीं.
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इस गाइडलाइन के मुताबिक, मौत की सजा के मामले में जैसे ही सुप्रीम कोर्ट विशेष अनुमति याचिका दाखिल की जाती है, तो सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री मामले के सूचीबद्ध होने की सूचना मौत की सजा सुनाने वाली अदालत को देगी. इसके 60 दिनों के भीतर केस संबंधी सारा मूल रिकॉर्ड सुप्रीम कोर्ट भेजा जाएगा या जो समय अदालत तय करे उस अवधि में ये रिकॉर्ड देने हाेंगे. अगर इस संबंध में कोई अतिरिक्त दस्तावेज या स्थानीय भाषा के दस्तावेजों का अनुवाद देना है तो वह भी देना होगा.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस मामले को लेकर सर्कुलर में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने की सूचना के बाद रजिस्ट्री पक्षकारों को अतिरिक्त दस्तावेज कोर्ट में देने के लिए 30 दिन का और समय दे सकती है. अगर तय समय में अतिरिक्त दस्तावेज देने की यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती है तो मामले को रजिस्ट्रार के पास जाने से पहले जज के चैंबर में सूचीबद्ध किया जाएगा और फिर जज इस संबंध में आदेश जारी करेंगे. सर्कुलर 12 फरवरी को ही जारी हुआ था, जो अब सामने आया है.निर्भया के गुनहगारों की फांसी में हो रही देरी को देखते हुए इस साल 22 जनवरी को केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. गृह मंत्रालय ने अपनी याचिका में यह मांग की थी कि मौत की सजा पर सुधारात्मक याचिका दाखिल करने के लिए समयसीमा तय की जाए. मौजूदा नियमों के मुताबिक, किसी भी दोषी की कोई भी याचिका लंबित होने पर उस केस से जुड़े बाकी दोषियों को भी फांसी नहीं दी जा सकती.
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