जनता ने उठाए सवाल, आखिर क्यों नहीं हो सकती निर्भया के आरोपियों को अलग अलग फांसी...
जनता ने उठाए सवाल, आखिर क्यों नहीं हो सकती निर्भया के आरोपियों को अलग अलग फांसी...
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नई दिल्ली: निर्भया सामूहिक दुष्कर्म के चारों दोषियों को पहले 22 जनवरी 2020 को फांसी होने वाली थी. वहीं अब इसकी नई तारीख 1 फरवरी है क्योंकि कुछ दोषियों ने अपने कानूनी विकल्प इस्तेमाल किए थे. जानकारी के लिए हम आपको बता दें कि एक ओर जहां मुकेश और विनय के क्यूरेटिव पिटीशन खारिज हो चुके हैं, वहीं मुकेश की तो दया याचिका भी राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है. वहीं पवन और अक्षय ने अब तक क्यूरेटिव पिटीशन और दया याचिका नहीं डाली है.

वहीं यह यह भी कहा जा रहा है कि अक्षय और पवन अलग-अलग क्यूरेटिव पिटीशन डालेंगे. अभी तक दोनों ने क्यूरेटिव पिटीशन नहीं डाली है, जिसका मतलब है कि इनकी फांसी एक फरवरी से आगे खिसक सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि कानून के अनुसार और तिहाड़ के जेल मैनुअल के हिसाब से दया याचिका खारिज होने के बाद भी दोषी को 14 दिन का समय दिया जाता है ताकि अपने सभी कानूनी अधिकारों का प्रयोग कर सके. 

अलग-अलग नहीं हो सकती फांसी: सूत्रों से जानकारी मिली है कि सुप्रीम कोर्ट में 1982 में आया हरबंस सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का केस इस मामले में उदाहरण है कि जब एक ही केस में कई लोग दोषी होते हैं तो हर दोषी को अलग-अलग सजा नहीं हो सकती. यह ऐसा केस है जिसमें उत्तर प्रदेश में चार लोगों की हत्या कर दी गई थी जिसके चार आरोपी थे. एक आरोपी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था. जंहा इस बात का पता चला है कि तीन अन्य को दोषी करार देते हुए अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. उन तीनों का नाम था जीता सिंह, कश्मीरा सिंह और हरबंस सिंह. सभी दोषियों ने इस केस में अलग-अलग पुनर्विचार याचिका डाली. तब सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरा सिंह की सजा को उम्रकैद में बदल दिया. जीता और हरबंस की याचिका खारिज कर दी गई. जीता और हरबंस को 1981 में एक ही दिन फांसी होनी थी. तब हरबंस सिंह ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका डाल दी. वहीं जीता सिंह को नियत तारीख पर फांसी दी गई.

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