कटाक्ष: हम तो चले परदेश....
कटाक्ष: हम तो चले परदेश....
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परदेश जाने का भारत में बड़ा चलन है। एक बार जो परदेश हो आता है, उसकी इज्जत देश में बढ़ जाती है। हमारे एक काका हैं, वे एक बार परदेश गए थे, तबसे गांव में उनकी बहुत धाक है। सब काका को बहुत मानते हैं और उनकी आवभगत में लगे रहते हैं। 

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अब परदेश गए हैं, तो इज्जत होना तो लाजिमी है। ​फिर चाहे वे परदेश काम से गए हों या भाग कर। परदेश तो परदेश होता है। इस मामले में हमारे देश के घोटालेबाज सबसे आगे हैं। विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी तक सब परदेश चले गए, तो देश में इज्जत भी बढ़ गई। अखबार उठाओ, तो इनकी खबरें दिखती हैं, जैसे ये कोई सेलिब्रिटी हो गए हों। यहीं मामला नहीं थमता, परदेश की सरकारें इनको चाहती भी बहुत हैं। अब विजय भाई को ही ले लो। सरकार चाहती है कि वे देश आ जाएं, लेकिन परदेश की सरकार उनको भेजने से  पहले  सुविधाओं के बारे में पूछती हो, तो मेहुलभाई के लिए परदेश सरकार इतनी प्रतिबद्ध है कि भारत पर ही आरोप लगा दिया कि उसने क्लीनचिट दी, तभी हमने अपना नागरिक बनाया, तो है न परदेश काम का। 

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परदेश की यह महिमा लाजवाब है। अब परदेश की यह महिमा सुनकर हमको भी लगने लगा है कि अपुन भी परदेश हो  जाएं, तो अपनी भी इज्ज्त बढ़ जाए। तो क्या कहते हैं करें कुछ ऐसा कि अपुन भी भाग जाएं परदेश, फिर देश की सरकार बुलाए और परदेश सरकार हमको अपनाए। 

 तीखे बोल

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