नववर्ष की शुरूआत में आधुनिकता के साथ, पौराणिकता का लगेगा महामेला
नववर्ष की शुरूआत में आधुनिकता के साथ, पौराणिकता का लगेगा महामेला
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मेषराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ। 
उज्जयिन्यां भवेत्कुम्भः सर्वसौख्य विवर्धनः।। 

अर्थात् जब सूर्य मेष राशि में हो और गुरू सिंह राशि में हों तब प्राचीन अवंतिका जिसे उज्जयिनी या उज्जैन कहते हैं में पर्व का आयोजन होता है। सिंह गुरू राशि में होने के कारण इस पर्व को सिंहस्थ कहा जाता है। यह पर्व सभी प्रकार के सुखों की वृद्धि करता है। इसमें दूर - दूर से संत और साधु आकर पवित्र और मोक्षदायिनी शिप्रा में स्नान करते हैं तो देश विदेश से श्रद्धालु भी यहां पहुंचकर स्नान करते हैं। मध्यप्रदेश की पुराणवर्णित नगरी उज्जैन में इस बार सिंहस्थ का आयोजन 22 अप्रैल से 21 मई तक होगा।

इस एक माह में श्रद्धालुओं को भक्ति, वैराग्य, आस्था और आधुनिकता के कई रंग देखने को मिलेंगे। नववर्ष के प्रारंभ के बाद यह संभवतः सदी का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन होगा। इसमें करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान करने की संभावना है। यह सिंहस्थ अपने आप में परंपरा से अलग कुछ और नए रंग लिए होगा जिसके चलते यह सिंहस्थ बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। 

यह स्नान पर्व बारह वर्ष में एक बार आता है। इस स्नान के दौरान मालवा में की जाने वाली पवित्र पंचक्रोशी यात्रा का संयोग भी आता है। जिसके कारण शहर में धार्मिक वातावरण होता है। इस बार का सिंहस्थ इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आधुनिक भारत में यह एक अतिप्राचीन धार्मिक आयोजन होने जा रहा है। इस स्नान पर्व में पहली बार महिला अखाड़ों की साध्वियों द्वारा स्नान किया जाएगा।

यही नहीं पहली बार इस सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े के संत भी पहुंचेंगे। इस सिंहस्थ में हिमालय की कंदराओं में तप आराधना करने वाले संत पहुंचकर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देंगे तो श्रद्धालुओं को आई लव यू कहने वाली साध्वी राधे मां भी पहुंचेंगी। कहीं साधु धुनि रमाते नज़र आऐंगे तो कहीं साधु अपने लिए भोजन बनाते, यौगिक क्रियाऐं करते हुए भी दिखाई देंगे। 

मान्यता 

दरअसल सिंहस्थ के आयोजन की कहानी पौराणिक मान्यता से जुड़ी है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से अमृत कलश निकला। देवता और दानव आपस में अमृत कलश के लिए झगड़ने लगे। ऐसे में अमृत कलश से कुछ बूंदें छलकीं और वह अमृत कुछ स्थानों पर गिरा। ये बूंदें हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, और उज्जैन में गिरीं। देवताओं की ओर से कलश देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कलश लेने की चेष्टा की थी। इससे इन क्षेत्रों में भी अमृत छलक गया। जहां भी यह अमृत गिरा वहां पर सिंहस्थ उत्सव का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2016 के बाद सिंहस्थ का आयोजन वर्ष 2028 में होगा। वर्ष 2016 के सिंहस्थ से पूर्व वर्ष 2004 में सिंहस्थ महापर्व का आयोजन हुआ था। वर्ष 2016 का सिंहस्थ बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। 

तैयारी  

वर्ष 2016 के सिंहस्थ आयोजन हेतु सिंहस्थ 2016 के आयोजन के लिए करोड़ों रूपए का बजट स्वीकृत किया गया है। जिसमें से 14 करोड़ 50 लाख रूपए की राशि अतिप्राचीन रूद्रसागर के पुर्ननिर्माण के लिए खर्च की गई है। सड़कों का निर्माण, पुलों का निर्माण और सीवरेज सिस्टम को दुरूस्त किया गया है। यही नहीं उज्जैन से इसके नज़दीकी क्षेत्रों की पहुंच के लिए देवास मार्ग, आगर मार्ग, मक्सी मार्ग, इंदौर - उज्जैन स्टेट हाईवे फोरलेन मार्ग को दुरूस्त कर फोरलेन और आधुनिक सड़कों में परिवर्तित किया गया है। सिंहस्थ के पेयजल आपूर्ति एक बड़ा सवाल है। इसके अलावा नदी जल की उपलब्धता और स्वच्छ जल की मांग को देखते हुए शिप्रा - नर्मदा लिंक योजना के ही साथ गंभीर 

बांध को इसके लिए तैयार रखा गया है। इसके अलावा 100 किलोमीटर के क्षेत्र में पाईपलाईन बिछाई गई है। शिप्रा नदी के विभिन्न घाटों को दुरूस्त कर पक्का कर दिया गया है। घाटों को व्यवस्थित और पहले से भी अधिक नया व बड़ा बनाया गया है। शिप्रा किनारे लाल पत्थर लगाए गए हैं तो नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए शिप्रा शुद्धिकरण का अभियान जनसहयोग से चलाया जा रहा है। 

पेशवाई 

सिंहस्थ में सबसे महत्वपूर्ण आयोजन साधु संतों और विभिन्न अखाड़ों की पेशवाई का होता है। दरअसल सिंहस्थ के शुभारंभ अवसर पर और स्नान के पूर्व साधु संत घोड़ों, बग्घियों में विराजकर अपने अखाड़ों के संतों और साधुओं के साथ निकलते हैं। इस दौरान साधु संत अपने वाद्यों का उपयोग भी करते हैं। यह एक तरह से उनका सम्मान होता है और वे शोभायात्रा के रूप में सिंहस्थ क्षेत्र में पहुंचते हैं। अधिकारियों द्वारा उनका सम्मानपूर्वक पूजन किया जाता है।

अपने शस्त्रों का भी साधु संत प्रदर्शन करते हैं पेशवाई में सबसे आगे पंचदशनाम जूना अखाड़ा होता है। इसके बाद निरंजनी अखाड़ा, फिर अन्य अखाड़े क्रम से होते हैं। इस स्नान में शैव और वैष्णव दोनों अखाड़े शामिल होते हैं मगर शैव अखाड़ों का महत्व अधिक होता है। साधु संतों को उनका डेरा लगाने के लिए उपयुक्त स्थान आवंटित किया जाता है। वर्ष 2016 में होने वाले सिंहस्थ महापर्व का आरंभ 22 अप्रैल वर्ष 2016 को होगा। इसके बात 6 मई को स्नान होगा। अक्षय तृतीया 9 मई को भी स्नान का आयोजन होगा। प्रमुख स्नान जिसे शाही स्नान भी कहा जाता है वह 21 मई को होगा। इस स्नान के साथ पर्व का समापन होगा। 

सिंहस्थ 2016 का आयोजन सफल बनाने के लिए सरकार और प्रशासन पूरी तरह से जुट गया है। शहर में यात्रियों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए शेष निर्माण कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। शहर में ई रिक्शा का संचालन भी प्रारंभ हो गया है। इसके अलावा सिटी बस, टाटा मैजिक और अन्य साधनों से लोक परिवहन व्यवस्था को मजबूत किया जा रहा है। वर्ष 2004 की ही तरह इस सिंहस्थ को भी सफल बनाने के लिए पूरी तैयारियां की जा रही हैं। इसके प्रचार - प्रसार के लिए भी पोस्टर्स, बैनर्स आदि लगाए गए हैं। उल्लेखनीय है कि विश्वभर से इस आयोजन में श्रद्धालु जुटेंगे। एक माह तक श्रद्धालु संतों की वाणि से अभिभूत होंगे।

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