नेपाल सिर्फ राजनीतिक संकट की चपेट में नहीं
नेपाल सिर्फ राजनीतिक संकट की चपेट में नहीं
Share:

संविधान को लेकर मतभेद के चलते अगस्त के मध्य से नेपाल का संकट दिन दो गुना और रात चौगुना होता जा रहा है. भारत से सभी तरीके की आर्थिक मदद को भी नेपाल ने लेने से मना कर दिया है. यह संकट केवल राजनीतिक संकट नहीं बल्कि मेडिकल संकट, क़ानूनी संकट और आर्थिक संकट बन चुका है. कुछ ही समय पहले एक बड़े भूकंप को झेलने के बाद इसे एक बड़ा संकट है. भूकंप में लगभग नौ हजार लोगों की मौत हुई थी और नौ लाख घरों के टूट जाने के बाद लोग बेघर हुए थे.

पूरा ही नेपाल देश संकट से बहुत ही ज्यादा बुरी तरह से प्रभावित है आगे आने वाले दिनों में यह संकट नया आयाम ज़रूर दिखाने वाला है. देश की आर्थिक व्यवस्था और मेडिकल व्यवस्था तो पहले ही टूट चुकी है, आगे कानून व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था भी टूट सकती है. विद्यार्थियों की स्कूल ना जाने के कारण भविष्य खतरे में दिखता है. नेपाल के लिए भारत बहुत ही ज्यादा प्रमुख है. रास्तों को ब्लॉक कर देने से सभी तरह के जरुरी संसाधनों में कमी आने की आगे भी आशंका है.

संयुक्त राष्ट्र के यूनाइटेड नेशन इंटरनेशनल चाइल्ड एजुकेशन फंड(unicef) ने हाल ही में रिपोर्ट जारी की है. जिसमें सभी लोगों को बुरी तरह प्रभावित होने का ब्यौरा दिया गया है. यह संकट आवश्यक होता जा रहा है क्योंकि इसकी जड़ विश्व को भी प्रभावित करेगी. Unicef की साउथ एशिया हेड का कहना है कि 8,00,000 नेपाली बच्चे जो पांच साल से कम उम्र के हैं उनको बीमारी होने की बहुत ज्यादा आशंका है, जबकि 5000 तो पहले ही बिमारियो का शिकार हो चुके है. बढ़ती ठंड को देखा जाए तो यह खतरा ओर भी ज्यादा बढ़ने की आशंका है. देश में सभी तरह के एंटीबायोटिक वेक्सीन और अन्य तरह की बेहद जरुरी दवाइयां भी खत्म होने लगी है.

जरूरी संसाधनों की कमी में लोगों को लकड़ी जला कर आग पैदा करनी पड़ रही है और खाना बनाना पड़ रहा है जिसके कारण कई लोग बीमार बढ़ सही हैं. अगर यही आगे भी चलता रहा तो देश में यह बीमारियां बड़ी बीमारियां बन सकती हैं. नवजात शिशुओं में कुपोषण होने की संभावना ठंड में और भी ज्यादा बढ़ जाती है.

अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब गुनाहो में बहुत ज्यादा वृद्धि होगी. हाल ही की रिपोर्ट में पाया गया है नेपाल से अवैध तस्करी बढ़ गई है. तस्करी में भारतीय मुद्रा भी शामिल है और अन्य जरूरी सामग्री भी शामिल है. स्थिति का इस बात से भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि पेट्रोल की कमी के कारण लोग काम पर भी नहीं जा पा रहे हैं. कुछ समय बाद कानून व्यवस्था का ठप हो जाना तो तय है. यह अब मानवीय संकट बनगया है.

तराई जाति ने हाल ही में नेपाल के संविधान में जगह ना मिलने पर इस आंदोलन की शुरुआत अगस्त के मध्य में की है. माना जाता है कि तराई जाति का भारत से गहरा संबंध है. जाती का मूल भारत से है. नेपाल के लिए यह बहुत ही मुश्किल था कि वह भारतीय जाति को उनके संविधान में जगह दे पर आबादी के आकड़ों की माने तो भारतीय तराई जाती का नेपाल में प्रभुत्व है. नेपाल सरकार यहाँ नहीं चाहती है कि भारतीय जाति को संविधान में जगह देने पर शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो.

यहाँ सिर्फ हितो का टकराता है. भारत में पहले भी नेपाल को यह हिदायत दी है कि भारतीय जाति को उनके संविधान में जगह मिलनी चाहिए, पर नेपाल सरकार ने भारत की इस हिदायत को पूरी तरह से नकार दिया. मौजूदा हाल में नेपाल का संविधान ज्यादा समय बिलकुल भी नहीं टिक पाएगा

नेपाल के लोगों की मांग इस तरीके से भी जायज़ है कि शक्तियों के विकेंद्रीकरण होने से उनका खुद का घाटा होगा. पहले ही भारत नेपाल के मसलों में कई रुप से दखल देता रहा है. नेपाली तारे जाती का उनके ही देश में प्रभुत्व कम होने से यह आंदोलन लाज़मी माना जा सकता है.

डॉ मिश्रा 
 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -