रह रह कर आंखों में आ रहा तबाही का वह भयानक मंजर
रह रह कर आंखों में आ रहा तबाही का वह भयानक मंजर
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छत्तीसगढ़ के धमतरी के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. मुकेश लुंकड़ जब नेपाल में भूकंप आया उस समय कांठमांडू के होटल में ठहरे थे। 10 से ज्यादा बार का कंपन, डरे-सहमे और रोते लोगों का चेहरा, धराशायी इमारतें, नई बिल्डिंग में दरारें, सड़क, मैदान में भीड़ समेत हर तरफ तबाही का मंजर रह रह कर मेरी आंखों में झूल रहा है। जब भी कांठमांडू का दृश्य याद आता है, मन दुखी और व्याकुल होने लगता है। यह बात शिशु रोग विशेषज्ञ डा. लुंकड़ ने कही। डा. लुंकड़ भूकंप का झटका लगने पर पहली मंजिल से गार्डन तक भागकर उन्होंने अपनी जान बचाई।

डा. मुकेश लुंकड़ ने बताया कि 25 अप्रैल को काठमांडू के एक होटल में शिशु रोग विशेषज्ञों का काफ्रेंस था, जिसमें हिस्सा लेने गए थे। 25 अप्रैल को सुबह 11 बजे होटल की पहली मंजिल के हॉल में कांफ्रेंस चल रही थी। टी ब्रेक हुआ ही था कि हाल हिलने लगा। कंपन के कारण कुर्सी, टेबल, कांच के बर्तन, गमला आदि टूट गए। भूकंप आने से सभी भयभीत हो गए। उस समय हाल में 100 से ज्यादा डाक्टर और होटल स्टाफ मौजूद थे। तत्काल होटल के कर्मचारियों ने सभी को लॉन और मैदान की तरफ भागने को कहा।

डा. लुंकड़ ने बताया कि अन्य लोगों के साथ भागकर वे भी मैदान में पहुंचे। नीचे सभी लोग सुरक्षित पहुंच गए थे। नीचे आने के बाद भी कुछ समय के अंतराल में 10 से ज्यादा बार कंपन हुआ। कंपन के समय सभी लोग भगवान से प्रार्थना कर रहे थे। कंपन का सिलसिला थमने के बाद होटल की बिल्डिंग की तरफ देखा तो गहरी दरारें आ गई थी। तत्काल मोबाइल पर अपने परिवार वालों को सकुशल होने की जानकारी दी। अन्य लोग भी मोबाइल लगाते दिखे। इसके बाद दिन और रात होटल के बाहर लान में गुजारनी पड़ी। होटल वालों ने खाना, चाय नाश्ता, गद्दा तकिया सबकुछ लाकर दिया। मैदान में रहने के बावजूद मन में अजीब तरह का भय समाया हुआ था।

डा. लुंकड़ ने बताया कि 26 अप्रैल को वापसी का टिकट होने के कारण होटल के लॉन से एयरपोर्ट के लिए निकले तो रास्ते भर क्षतिग्रस्त और जमीदोंज हो चुके मकान और इमारत नजर आए। नए मकानों पर गहरी दरारें थी तो पुराने मकान ढह गए थे। कांठमांडू के नागरिक घर छोड़कर सड़क और मैदान पर आ गए थे। सड़क पर हर तरफ भीड़ ही भीड़ थी। रोते- बिलखते और ईश्वर से प्रार्थना करते लोग दिख रहे थे। एयरपोर्ट पर भी भीड़ थी। मदद के लिए भारतीय वायुसेना के विमान भी पहुंच चुके थे।

डा. लुंकड़ ने बताया कि मैदान में जब बार- बार कंपन हो रहा था तो ऐसा लग रहा था कि न जाने क्या होने वाला है। लेकिन ईश्वर की कृपा, परिवारवालों की दुआएं और शहर के लोगों की शुभकामनाएं काम आई। इसलिए आज मैं सुरक्षित अपने शहर और घर पहुंच पाया। जब भी कांठमांडू के भूकंप की घटना याद आती है मन सिहर उठता है। मैं अपने जीवन में शायद ही कभी इस घटना को भूल पाऊंगा।

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