नेपाल : लंबी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं मधेसी नेता
नेपाल : लंबी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं मधेसी नेता
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नई दिल्ली : नेपाल में राज्यों के सीमांकन और उचित प्रतिनिधित्व के लिए लड़ रहे मधेसी समुदाय के नेताओं और सरकार के बीच गुरुवार को हुई वार्ता बिना किसी नतीजे के खत्म हो गई। वार्ताओं के कई दौर के बावजूद नतीजे नहीं निकलने के बीच मधेसी नेता अब लंबी लड़ाई के लिए कमर कस रहे हैं। तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी के अध्यक्ष और नेपाल के नए संविधान के खिलाफ चल रहे मधेस आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक महंत ठाकुर ने खास मुलाकात में कहा, हम अपने आंदोलन को तब तक चलाएंगे जब तक हमारी वाजिब मांगें पूरी नहीं हो जाएंगी।

हमने शाह राजवंश के तहत तीन सदियों तक भेदभाव सहा है क्या फर्क पड़ जाएगा अगर हम अपने लक्ष्य को हासिल करने में कुछ और साल लगा देंगे। महंत ठाकुर के साथ-साथ संघीय सोशलिस्ट फोरम-नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव, तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी-नेपाल के अध्यक्ष महेंद्र यादव और सदभावना पार्टी के अध्यक्ष राजेंद्र महतो ने इसी हफ्ते के शुरू में भारत यात्रा की थी। इन नेताओं ने कई भारतीय नेताओं से बात की। इनमें तमाम राजनैतिक दलों के नेताओं के साथ-साथ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश सचिव एस.जयशंकर भी शामिल थे।

तीन दशक तक नेपाल कांग्रेस के साथ रहने के बाद 2007 में तराई मधेस लोकतांत्रिक पार्टी बनाने वाले 66 साल के महंत ठाकुर ने कहा, चढ़ाई लंबी है शिखर दूर है लेकिन हम अपने अधिकारों को हासिल करेंगे। ठाकुर ने कहा कि नेपाल की बड़ी राजनैतिक पार्टियां मधेसी राजनैतिक दलों और तराई के दक्षिणी मैदान में रहने वाले जनजातीय समूहों की मांगों की लगातार अनदेखी कर रही हैं। नरम माने जाने वाले मधेस नेता ठाकुर ने कहा, अगर मधेसी मोर्चा की मांगों पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो फिर काठमांडू और मधेस का रिश्ता लंबा नहीं चल सकेगा।

उन्होंने कहा कि राज्यों के सीमांकन की मांग सबसे बड़ी मांग है। हमें तराई में झापा से कांचापुर तक के इलाके में दो संघीय राज्य चाहिए। इसमें एक मधेस प्रदेश होगा और एक थारुहाट प्रदेश जहां थारू जनजाति की बहुलता है। मधेसियों का कहना है कि सत्ता पर काबिज पहाड़ के लोगों के हाथों उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है। यही बात नए संविधान में भी दिखी है जिसमें इन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया और न ही इनके इलाकों का सही तरीके से सीमांकन कर नए राज्यों का गठन किया गया। साथ ही 2007 के अंतरिम संविधान में दिए गए अधिकार भी वापस ले लिए गए।

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