सत्य - असत्य
मानो अगर आप किसी रास्ते पे चल रहे हे और आपको वहां दो पत्थर की मुर्तिया पड़ी मिले जिसमे पहली भगवान राम की और दूसरी रावण की
वहीँ इसके ठीक विपरीत एक दूसरे दृश्य की बात करे तो जरा इस परिस्थिति के बारे में सोचिये ओर बताइये
क्यों की यहाँ भगवान की मूर्ति पत्थर की हे और रावण की मूर्ति सोने की अर्थात यहाँ हमारे अंदर का मानव लालच जाग जायेगा। हम सिर्फ अपना मतलब अपना फायदा अपना अच्छा देखते हे यहाँ हमें किसी और चीज़ से मतलब नहीं रहता अर्थात हम यानि मनुष्य अपनी अपनी सुविधा अनुसार ही सत्य-असत्य, सकारात्मक-नकारात्मक, अच्छाई-बुराई को तय करते हे।
अधिकतर देखा गया है की मनुष्य के लालच की पराकाष्ठा कभी खत्म नहीं होती हम सिर्फ अपने स्वार्थ अपने लालच में ही उलझे रहते जहाँ कहीं हमें अपना फायदा दिखता हे हम उस ओर दौड़ पड़ते हे उसपर ये भी नहीं देखते की वो सही हे या गलत, अच्छा हे या बुरा ।