'ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन' सिस्टम इस काम में हुआ पूरी तरह फ़ैल
'ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन' सिस्टम इस काम में हुआ पूरी तरह फ़ैल
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अब इसका उपयोग बड़े पैमाने पर स्मार्टफोन में फेशियल रिकॉग्निशन फीचर आने के बाद होने लगा है. कई देशों की सुरक्षा एजेंसियां और पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल करने लगी हैं. जिन देशों में सरकारी और निजी सिक्योरिटी एजेंसियां ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल कर रही हैं, उनमें अमेरिका और चीन जैसे देश शामिल हैं. वहीं अब भारत में भी ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल की बात चल रही है. आइए जानते है पूरी जानकारी विस्तार से 

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नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो ने ऑटोमेटेड फेशियल रेकॉग्निशन सिस्टम के लिए कई कंपनियों से टेंडर भी मांगा है. ऑटोमैटिक फेशियल रिकॉग्निशन एक इंटरनेट कनेक्टेड सिस्टम होगा, जो नई दिल्ली स्थित एनसीआरबी के डाटा सेंटर से कंट्रोल होगा. इसका एक्सेस तमाम पुलिस स्टेशन में भी होगा. इसके लिए क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम (CCTNS) का इस्तेमाल होगा. इस सिस्टम के जरिए अपराधी सीसीटीवी की जद में आते ही ब्लैक लिस्ट लोगों की सूची में उसकी फोटो पहचान कर अलर्ट भेजेगा. 

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हाल ही में निजता को लेकर अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को शहर में पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. पिछले सप्ताह ही यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स ह्यूमन राइट्स सेंटर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यदि पुलिस के लाइव फेशियल रिकॉग्निशन (LFR) तकनीक को कोर्ट में चुनौती दी जाए तो यह गैर-कानूनी साबित होगी। बता दें साल 2017 में फेशियल रिकॉग्निशन की वजह से ही लंदन में नॉटिंग हिल कार्निवल के दौरान एक निर्दोष शख्स की गिरफ्तारी हुई थी. बता दें कि नॉटिंग हिल कार्निवल एक म्यूजिक फेस्टिवल है, जिसका आयोजन हर साल अगस्त में होता है. इसमें करीब 20 लाख लोग शामिल होते हैं और सुरक्षा में 9,000 पुलिस की तैनाती होती है. 80 फीसदी मामलों में गलत साबित हुई फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लंदन पुलिस की फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक 80 फीसदी मामलों में गलत साबित हुई है. एसेक्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यहां तक कह दिया है. कि फेशियल रिकॉग्निशन की लाइव रिपोर्ट इतनी बेकार है कि इसका इस्तेमाल तत्काल प्रभाव से बंद कर देना चाहिए. शोधकर्ताओं ने इसका लाइव डेमो भी दिया जिसमें लंदन के स्ट्रैटफोर्ड के वेस्टफील्ड शॉपिंग सेंटर में पुलिस के जरिए इंस्टॉल कैमरे की मदद ली गई है. लाइव डेमो के दौरान फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक ने डाटाबेस में मौजूद जानकारी के आधार पर 42 लोगों को संदिग्ध माना, जिनमें से सिर्फ 8 लोगों का मिलान ही सही था. ऐसे में सिर्फ इस मामले में फेशियल रिकॉग्निशन सिर्फ 19 फीसदी ही सही रही. मॉफिन और कुत्ते में पहचान नहीं कर पाया कंप्यूटर!

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साल 2017 में इसी फेशियल रिकॉग्निशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की टेस्टिंग के लिए चिन्हुआ कुत्ता और मॉफिन के बारे में सवाल पूछा गया, तो परिणाम हैरान करने वाला था. कंप्यूटर मॉफिन और चिन्हुआ कुत्ते में पहचान नहीं कर पाया और जबकि फोटो देखकर कोई शख्स आसानी से इनकी पहचान कर सकता है. इन तमाम टेस्ट्स में फेशियल रिकॉग्निन के फेल होने के बाद यही सवाल उठ रहा है कि यदि इसके कारण किसी निर्दोष को सजा होती है तो उसका जिम्मेदार कौन-होगा. आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे​ कि किसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर एक आतंकवादी आत्मघाती हमले की फिराक में है लेकिन तभी वहां मौजूद फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम आतंकवादी के चेहरे को स्कैन करता है और अपने डाटाबेस में मौजूद फोटो-वीडियो से चेहरे का मिलान करता है. इसके बाद सिस्टम ऑटोमैटिक आतंकवाद निरोधक दस्ते को अलर्ट करता है. इसके बाद पुलिस वहां पहुंचती है, आतंकवादी को पकड़ लिया जाता है और सैकड़ों लोग मरने से बच जाते हैं, लेकिन कल्पना कीजिए कि ऐसे मामले में यदि फेशियल रिकॉग्निशन गलत साबित होता है तो क्या होगा?कानूनी रूप से अनुचित?दुनियाभर के तमाम शोधकर्ताओं का कहना है कि फेशियल रिकॉग्निशन को लेकर स्पष्ट रूप रूप से कोई कानून नहीं है, हालांकि मानवाधिकार कानून में यह भी कहा गया है कि लोकतांत्रिक समाज में फेशियल रिकॉग्निशन जरूरी भी है. ऐसे में जरूरी यह है कि फेशियल रिकॉग्निशन को लेकर एक कानून बने और उसमें बताया जाए कि फेशियल रिकॉग्निशन का इस्तेमाल कैसे हो.

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