Ayodhya land dispute case शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 28वें दिन सुनवाई की. बता दे कि मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने निश्चय किया कि वह सोमवार से मामले की सुनवाई एक घंटा ज्यादा करेगी. पीठ ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष के वकीलों से कहा कि अदालत ने सोमवार से सुनवाई के रोजाना समय को चार बजे से बढ़ाकर पांच बजे तक करने का फैसला किया है. अमूमन, शीर्ष अदालत शाम चार बजे के बाद मामलों की सुनवाई नहीं करती है.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बीते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की समय सीमा तय करते हुए कहा था कि उम्मीद है कि 18 अक्टूबर तक सुनवाई खत्म हो जाएगी. साथ ही यह भी साफ कर दिया था कि अब मध्यस्थता की कोशिशों को लेकर सुनवाई नहीं रोकी जा सकती है. यही नहीं अदालत ने पक्षकारों को मध्यस्थता से समझौता करने को लेकर भी छूट दी थी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि यह पहले की तरह ही गोपनीय रहेगी. साथ ही कहा था कि सुनवाई लगातार आगे भी जारी रहेगी. इससे माना जा रहा है कि देश के इस सर्वाधिक चर्चित मामले में नवंबर तक फैसला आ जाएगा.शीर्ष अदालत ने मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को धमकाने के मामले में कल सुनवाई की थी. सुनवाई के दौरान तमिलनाडु के प्रोफेसर शनमुगम ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए माफी मांगी. अदालत ने कहा कि 88 साल की उम्र में वह ऐसा क्यों कह रहे हैं. प्रोफेसर ने रामलला के खिलाफ पेश होने पर पत्र लिखकर शाप दिया था.
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इसके अलावा मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने गुरुवार को अपनी दलीलों के जरिए यह साबित करने की कोशिश की कि विवादित स्थल पर मस्जिद थी. उन्होंने निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवर दास द्वारा 1885 में दाखिल वाद का हवाला देते हुए कहा था कि वह स्थल के बाहरी परिसर में राम चबूतरा मन्दिर का निर्माण कराने जा रहे थे. उन्होंने कहा कि फैजाबाद के उप न्यायाधीश ने याचिका को मंजूरी नहीं दी थी जिससे साफ होता है कि मुस्लिम भीतर नमाज पढ़ते थे और बाहरी परिसर में हिंदू पूजा कर रहे थे. मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट के खरे-खरे सवालों का सामना करना पड़ा था. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से खंबों पर मूर्तियों और कमल के चित्रों को लेकर कई सवाल पूछे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या इस्लाम के मुताबिक मस्जिद में ऐसे चित्र हो सकते हैं. क्या किसी और मस्जिद में ऐसे चित्र होने के सबूत हैं. इसके अलावा कोर्ट ने राजीव धवन की ओर से 1991 की चार इतिहासकारों की रिपोर्ट को साक्ष्य में स्वीकारे जाने की दलील पर साफ कर दिया कि रिपोर्ट अदालत में साक्ष्य नहीं हो सकती वह महज एक राय के तौर पर मान्य है.
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