नवरात्रि सप्तमी दिन : मां कालरात्रि की आराधना से हर तरह का भय होगा नष्ट
नवरात्रि सप्तमी दिन : मां कालरात्रि की आराधना से हर तरह का भय होगा नष्ट
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नवरात्रि के सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि के रूप में पूजा जाता है इनका रूप अन्य रूपों से अत्यंत भयानक है लेकिन माता अत्यंत दयालु और कृपालु है। ऐसे लोग जो किसी कृत्या प्रहार से पीड़ित हो एवं उन पर किसी अन्य तंत्र-मंत्र का प्रयोग हुआ हो अगर वे व्यक्ति मां कालरात्रि की साधना कर शत्रुओं से निवृत्ति पा सकते हैं।  मां के इस स्वरूप को वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है आचार्य बालकृष्ण मिश्र के मुताबिक, दुष्टों का नाश करने के लिए आदिशक्ति ने यह रूप धारण किया था। भक्तों के लिए मां कालरात्रि सदैव शुभ फल देने वाली माता हैं इस कारण मां का नाम ‘शुभंकारी’ भी है। ऐसी मान्यता है कि मां कालरात्रि की कृपा से भक्त हमेशा भयमुक्त रहता है, उसे अग्नि भय, जल भय, शत्रु भय, रात्रि भय आदि किसी भी प्रकार का भय कभी नहीं होता।

काली रात की तरह काला है मां का स्वरूप  
मां कालरात्रि देवी का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है व बहुत ही भंयकर है, लेकिन मां कालरात्रि का हृदय बहुत ही कोमल और विशाल है। मां कालरात्रि की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। मां कालरात्रि की सवारी गर्धव यानि गधा है, मां कालरात्रि का दायां हाथ हमेशा उपर की ओर उठा रहता है, इसका अर्थ मां सभी को आशीर्वाद दे रही हैं। मां कालरात्रि के निचले दाहिने हाथ की मुद्रा भक्तों के भय को दूर करने वाली है। उनके बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र है और निचले बाएं हाथ में कटार है।

मां कालरात्रि की पौराणिक कथा 
जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। इसे देख दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां दुर्गा ने गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

पूजा विधि व प्रसाद  
मां कालरात्रि की पूजा आरंभ करने से पहले कुमकुम, लाल पुष्प, रोली लगाएं, माला के रूप में मां को नींबुओं की माला पहनाएं और उनके आगे तेल का दीपक जलाएं। मां को लाल फूल अर्पित करें साथ ही गुड़ का भोग लगाएं इसके बाद मां के मन्त्रों का जाप करें या सप्तशती का पाठ कर। इस दिन मां की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। 

मां कालरात्रि उपासना मंत्र 
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता,
लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, 
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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