शुरू हुआ शक्ति की भक्ति का पर्व, नौ दिनों तक होगी आराधना
शुरू हुआ शक्ति की भक्ति का पर्व, नौ दिनों तक होगी आराधना
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आश्विन मास के शुक्लपक्ष की प्रथम तिथि के साथ ही हर कहीं शक्ति का अलख जगाने का प्रयास प्रारंभ हो गया है। अलसुबह से ही देशभर में घंटे, शंख, नगाड़े आदि बज उठे हैं। हर कहीं शक्ति की भक्ति का अलख जगाया जा रहा है। सुबह से ही वातावरण सुगंधित धूप, गूगल, इत्र से महक रहा है। मंदिरों में श्रद्धालु दर्शनों के लिए उमड़ रहे हैं। देशभर में प्रतिष्ठापित 51 शक्तिपीठों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। हर कहीं श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर होकर देवी की विभिन्न स्वरूपों की आराधना करने में लगे हैं। इस दौरान मध्यप्रदेश के उज्जैन में प्रतिष्ठापित श्री हरसिद्ध मंदिर, मैहर माता, पीातंबरा पीठ, मां बगलामुखी मंदिर समेत देश के ज्वालादेवी मंदिर और कई प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है।

इंदौर में भी मां अन्नपूर्णा मंदिर समेत कई मंदिरों में श्रद्धालु सुबह से ही दर्शनों के लिए कतार में लगे हुए हैं। उज्जैन के श्री गढ़ कालिका मंदिर में श्रद्धालु आराधना में व्यस्त हैं। यही नहीं श्रद्धालु अपने घरों में भी देवी आराधना में लगे हुए हैं। कई लोगों ने घरों में जवारे बोने की तैयारी तक की है। उल्लेखनीय है कि नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु जवारे बोते हैं। 9 दिनों में जवारे माता की कृपा से विकसित होते हैं जिनका विसर्जन देवी प्रतिमा के साथ किया जाता है।

नवरात्रि को लेकर बाजार भी सज गए हैं। बाजारों में पूजन सामग्री, देवी मां की प्रतिमाओं को तैयार कर दिया गया है। लोग देवी प्रतिमाओं की पूछ कर उन्हें ले जा रहे हैं। दूसरी ओर नवरात्रि को लेकर गरबा पांडालों में भी धूम मची हुई है। पांडालों को आकर्षक विद्युत सज्जा और कई तरह की तैयारियों से लैस कर दिया गया है।

मंच आकर्षक अंदाज़ में सजाकर देवी प्रतिमा की प्रतिष्ठा करने की तैयारियां की जा रही हैं। श्रद्धालु कई क्षेत्रों से देवी प्रतिमाऐं चल समारोह, कलश यात्रा के साथ अपने पांडालों तक लेकर जाऐंगे। इस दौरान श्रद्धालु युवतियां और महिलाऐं गरबा व डांडिया खेलती हुई निकलेंगी। नवरात्रि की शुरूआत के दौरान लोग अनुष्ठान हवन आदि कार्यों में लग गए हैं। हर कहीं मंत्रों का उच्चारण सुनाई दे रहा है।

नवरात्रि के पहले दिन देवी की आराधना श्री शैलपुत्री के स्वरूप में की जाएगी। शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की ही बेटी कही गई हैं। अपने पूर्वजन्म में ये माता सती थीं। दक्ष प्रजापति के यज्ञ को भंग करने के बाद अगले जन्म में इनका नाम शैलपुत्री हुआ। माता ने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया है। माता वृषभ पर आरूढ़ हैं। इनके हाथ में त्रिशूल है। माता ने अपने दूसरे हाथ में कमल पुष्प धारण कर रखा है। माता का यह स्वरूप बेहद ही मंगलदायी है। 

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