इस विधि से करें मां कात्यायनी की पूजा, जानिए बीज मंत्र और कथा
इस विधि से करें मां कात्यायनी की पूजा, जानिए बीज मंत्र और कथा
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नवरात्रि का पर्व चल रहा है और आज नवरात्रि का छठा दिन है। नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है। यह माता के ज्वलंत स्वरूप को प्रदर्शित करने वाला स्वरूप हैं। कहते है कि मां कात्यायनी की पूजा करने से शक्ति प्राप्त होती है। केवल यही नहीं बल्कि मां कात्यायनी अपने भक्तों को सुख और समृद्धि का भी वरदान देती हैं। जी हाँ और मां कात्यायनी की तेजोमय छवि की पूजा आराधना करने से सफलता और प्रसिद्धि भी मिलती है। इसी के साथ जानकारों का कहना है, मां कात्यायनी का मंत्र अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली होता है। अगर पूजा विधि-विधान से की जाए तो माता प्रसन्न होती हैं। जी हाँ और मां कात्यायनी की पूजा में लाल गुलाब अवश्य अर्पित करना चाहिए। अब आज हम आपको बताते हैं मां कात्यायनी के मंत्र, कथा और पूजा विधि। 


मां कात्यायनी बीज मंत्र:
* क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः

मां कात्यायनी के मंत्र:
* ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।।
* एत्तते वदनम साओमय्म लोचन त्रय भूषितम।
पातु न: सर्वभितिभ्य, कात्यायनी नमोस्तुते।।

मां कात्यायनी की पूजा विधि- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और फिर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद मां की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं। अब मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें। अब मां को रोली कुमकुम लगाएं। इसके बाद मां को पांच प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। अब मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं। इसके बाद मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान करें।

मां कात्यायनी की कथा- बहुत समय पहले महर्षि कात्यायन मां दुर्गा की तपस्या करते थे। उनकी तपस्या और श्रद्धा देखकर मां दुर्गा ने उन्हें यह वरदान दिया था कि वह उनकी पुत्री के रूप में उनके घर में जन्म लेंगी। मां दुर्गा ने जो वरदान दिया था वह पूरा हुआ और महर्षि कात्यायन के आश्रम में मां दुर्गा का जन्म हुआ। त्रिदेवों के तेज से देवी दुर्गा की उत्पत्ति हुई थी। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर मां दुर्गा ने ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लिया था। जब देवी दुर्गा का जन्म हुआ था तब ऋषि ने मां दुर्गा की तीन दिनों तक पूजा की थी। इसी बीच महिषासुर राक्षस लोगों को अत्यधिक परेशान कर रहा था जिसका संहार मां कात्यायनी ने किया था।

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