अष्टमी या नवमी पर करें हवन, जानिए शुभ मुहूर्त, सामग्री और विधि
अष्टमी या नवमी पर करें हवन, जानिए शुभ मुहूर्त, सामग्री और विधि
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नवरात्रि का पर्व चल रहा है और आज नवरात्रि का 8वां दिन है. कई लोग आज ही अष्टमी और नवमी साथ में मना रहे हैं. ऐसे में कहाँ जाता है आखिरी दिन हवन करना चाहिए. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप हवन कैसे करें और हवन का शुभ मुहूर्त.


क्या है हवन का मुहूर्त - 24 अक्टूबर, शनिवार को सुबर 06:58 से 25 अक्टूबर सुबह 07:42 तक नवमी की तिथि है। इस वजह से महानवमी का हवन भी 25 अक्टूबर को होगा। आपको बता दें कि नवमी के दिन सुबह हवन के लिए 01 घंटा 13 मिनट का समय है और इसे आप सुबह 06:28 से 07:41 तक कर सकते हैं. वैसे आप चाहे तो अष्टमी या दुर्गा अष्टमी के दिन हवन कर सकते हैं. इसके लिए 24 अक्टूबर को सुबह 06:58 से शाम 05:42 तक हवन का मुहूर्त है।

हवन सामग्री और विधि - आम की लकडियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे तथा घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा।

सबसे पहले गाय के गोबर से बने उपले घी में डुबाकर डाले जाते हैं।

हवन के मंत्र

ओम गणेशाय नम: स्वाहा

ओम गौरियाय नम: स्वाहा

ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा

ओम दुर्गाय नम: स्वाहा

ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा

ओम हनुमते नम: स्वाहा

ओम भैरवाय नम: स्वाहा

ओम कुल देवताय नम: स्वाहा

ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा

ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा

ओम विष्णुवे नम: स्वाहा

ओम शिवाय नम: स्वाहा

ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमस्तुति स्वाहा।

ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा

ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।

ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।

अब ऐसा करने के बाद नारियल के गोले में लाल कपड़ा या कलावा लपेट दें। उसके बाद सुपारी, पान, बताशा, पूरी, खीर और अन्य प्रसाद को हवन कुंड के बीच में स्थापित कर दें। अब पूर्ण आहुति मंत्र का उच्चारण करें - ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।

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