नवरात्री 2018: क्या आप जानते हैं कैसे हुई देवी दुर्गा की उत्पत्ति ?
नवरात्री 2018: क्या आप जानते हैं कैसे हुई देवी दुर्गा की उत्पत्ति ?
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नई दिल्ली: माँ भगवती आदिशक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्री इस साल 10 अक्टूबर से शुरू हो रहा है, इन 9 दिनों में भक्त महामाया देवी दुर्गा के 9 विभिन्न रूपों की उपासना करते हैं. लेकिन बहुत कम लोग ही ये जानते हैं, कि देवी दुर्गा कि उत्पत्ति कैसे हुई ? हमारे पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है, मार्कण्डेय पुराण में वर्णित देवी महात्मय में बताया गया है , कि वैसे तो ये देवी नित्य और अजन्मा हैं, लेकिन जब-जब प्राणियों की रक्षा के लिए अवतरित होती हैं,  तब-तब लोक में जन्मी हुई कहलाती हैं.

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देवी महात्मय की कथा के अनुसार असुरराज महिषासुर प्रजापिता, ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर तीनों लोक में उत्पात मचाने लगा, उसने देवराज इंद्र से स्वर्ग का राज्य भी छीन लिया, महिषासुर को ये वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी. ऐसे में महिषासुर के आतंक से तंग आकर सभी देवता त्रिदेव की शरण में पहुंचे, वहां उपस्थित सभी  देवताओं ने महिषासुर पर बड़ा क्रोध किया, तभी उन सभी देवताओं के शरीर से बड़ा भारी तेज़ निकला, जो आकाश में जाकर एक हो गया, सभी देवताओं के तेज़ से उस आदिशक्ति देवी का शरीर बना. महादेव के तेज से देवी एक मुख, विष्णु के तेज से भुजाएं, यमराज के तेज से केश, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा और इसी तरह अन्य देवताओं के तेज से भगवती के शरीर की उत्पत्ति हुई. 

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इसके बाद सभी देवताओं ने उन्हें अपने पास से अस्त्र शास्त्र भेंट किए, महादेव शिव ने उन्हें एक त्रिशूल भेंट किया, भगवान विष्णु ने उन्हें अपने चक्र में से एक चक्र उत्पन्न करके दिया, इंद्र ने वज्र, अग्नि ने शक्ति और बाणों से भरा तरकश, यमराज ने दंड और पाश, इस तरह सभी देवताओं  ने उन्हें अस्त्र-शास्त्र अर्पित किए, हिमालय ने उन्हें सवारी के लिए सिंह प्रदान किया. इस प्रकार जब देवी पूर्ण हुई तो उनके तेज़ से तीनों लोक जगमगाने लगे और देवी के भीषण अट्टहास से सारे असुर कम्पायमान हो गए, देवी के भार से पृथ्वी दबी जा रही थी और उनके सर के मुकुट से आकाश में रेखा सी खिंच रही थी. सभी तरह की शक्तियों से संपन्न देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर देवताओं और पृथ्वीवासियों की रक्षा की, जिसके बाद पृथ्वीवासियों सहित सभी देवताओं ने भी देवी आदि शक्ति की स्तुति की, तदनन्तर देवी सबको आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गई. 

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