नवरात्र के दूसरे दिन इस तरह करे ब्रह्मचारिणी का पूजन
नवरात्र के दूसरे दिन इस तरह करे ब्रह्मचारिणी का पूजन
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नवरात्र आरम्भ हो चुका है. बीते 25 मार्च से नवरात्र का पर्व शुरू हो चुका है और यह पर्व सभी हिंदुओं के लिए मुख्य माना जाता है. यह पर्व नौ दिनो का होता है जिनमे मातारानी के भक्त उपवास रखते है और माँ के सामने अपनी कामना रखते हैं. इन दिनो  में माँ को ख़ुश करने के लिए पूजन किया जाता है. ऐसे में आज माँ ब्रह्मचारिणी का दिन है. नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनकी पूजा विधि, कि कैसे कर सकते हैं आप उनका पूजन.
 
पूजन - आप सभी को माँ ब्रह्मचारिणी जी की पूजा के लिए सबसे पहले जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करवा दे. अब इसके बाद देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें. अब प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. इसके बाद इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें.
इनकी पूजा के पश्चात माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें. अब देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें. अब यह करने के बाद देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर भांति भांति से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को लाल फूल काफी पसंद है. अब इसके बाद घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें.
 
अब सबसे अंत में क्षमा प्रार्थना करें-
 
आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी. ब्रह्मचारिणी की ध्यान- वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥ परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥ मां का मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:.. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा.. ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ- तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥ शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥ ब्रह्मचारिणी की कवच- त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी.
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥ पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो. अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी.

 

 
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