नई दिल्ली: शारदीय नवरात्र आज से शुरू हो चुके हैं और इसमें मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है. शारदीय नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है. पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने की वजह से देवी का नाम 'शैलपुत्री' पड़ा. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं. इस देवी के दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल है. वैसे तो नौ दिनों में व्रत रखने वाले और पूजा करने वाले सभी भक्तों पर मां की कृपा बरसती है, किन्तु हर दिन पूजा का अलग तरीका होता है.
पहले दिन मां शैलपुत्री को प्रसन्न कर आप अखंड सौभाग्य का वरदान पा सकते हैं. मां शैलपुत्री की आराधना करने से हमारे जीवन में स्थिरता और शक्ति की कमी दूर हो जाती है. महिलाओं के लिए तो मां शैलपुत्री की पूजा बहुत शुभ मानी जाती है. शैलपुत्री की आरती से पहले पूजा स्थल को अच्छे से स्वच्छ कर लें. माता की तस्वीर भी पानी से धोएं. कलश स्थापना के लिए एक लकड़ी के पाटे पर लाल कपड़ा बिछाएं और एक मुट्ठी में चावल लेकर माँ आदिशक्ति का ध्यान करते हुए से पाटे पर डालें.
अब जिस कलश को स्थापित करना है उसमें शुद्ध जल भरें, आम के पत्ते लगाएं और नारियल उस कलश पर शापित कर दें. कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं. इसकी किनोर पर कलावा बांधे, फिर उसे स्थापित कर दें. कलश पर चुनरी चढ़ाएं. एक मिट्टी के कटोरे में मिट्टी डालें उसे पानी से गीला कर दें और जौं बो दें. मां शैलपुत्री की तस्वीर पर कुमकुम लगाएं और उन्हें चुनरी चढ़ाएं. भोग के साथ सुपारी, लोंग, घी भी रखें. इसके बाद व्रत का संकल्प लें और मां शैलपुत्री की कथा का पाठ करें.
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