2016 में लागू नोटबंदी में देश को सबसे अधिक चूना लगाने में ज्वैलर्स आगे रहे थे. इस बात का खुलासा वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाली एजेंसियां ने दिया है. बता दे कि तकरीबन चार वर्षो की जांच के बाद जो बात सामने आ रही है वे इन एजेंसियों के संकेत को सही साबित करते हैं. नोटबंदी 09 नवंबर, 2016 को लागू की गई थी और 30 दिसंबर, 2016 के आकड़े बताते हैं कि किसी ज्वैलर ने सामान्य से 93 हजार फीसद ज्यादा रकम बैंकों में जमा करवाई तो किसी ज्वैलर ने अपनी सालाना कमाई से एक हजार फीसद ज्यादा राशि सिर्फ उक्त अवधि जमा करा दी. पांच लाख रुपये की सालाना आय वाले ज्वैलरों ने दो-तीन दिनों में करोड़ों रुपये जमा करा दी.
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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लेकिन जांच एजेंसियों की कार्रवाई में दूध का दूध और पानी का पानी होने लगा है. एक एक आंकड़ों की छान-बीन हो रही है जो जल्द ही पूरा हो जाएगी. आय और जमा राशि के बीच बेहद बड़े अंतर को लेकर इनसे पूछताछ हो रही है. कई ज्वैलरों के खिलाफ कार्रवाई भी हो रही है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि नोटबंदी के दौरान प्रतिबंधित 500 और 1000 रुपये के नोटों को सिस्टम में पहुंचाने में ज्वैलरों ने बेहद प्रमुख भूमिका निभाई है. तकरीबन सभी ने प्रतिबंधित नोटों को ठिकाने लगाने के लिए एक ही तरीका अपनाया है.
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इस मामले को लेकर सभी ने यही कहा है कि अक्टूबर, 2016 के अंत से उन्हें भावी खरीदारी के लिए अग्रिम मिलने शुरु हुए और यह सिलसिला दिसंबर, 2016 तक चला. लेकिन इसके पक्ष में अधिकांश ज्वैलर कोई ठोस सबूत नहीं पेश कर पाये हैं. कुछ ने अपनी खाता-बही में सोना-चांदी या आभूषण खरीदने की इंट्री की हुई है लेकिन वे सब गलत पाये गये हैं. कुछ ज्वैलरों ने करोड़ों रुपये के आर्डर बाहर से लिया हुआ है लेकिन उसकी आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं की है. कई ज्वैलरों ने सैकड़ों बेनाम ग्राहकों से 20 हजार रुपये से कम राशि लेने को दिखाया है और इस तरह से करोड़ों रुपये अपने बैंक खाते में जमा किया है. यह राशि अग्रिम के तौर पर दिखाया गया है लेकिन कई साल बीत जाने के बावजूद इसे बदले कोई आपूर्ति नहीं की गई है.
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