राहुल गांधी के 'पक्ष' में लिखने के मिलते हैं 1000 रुपए! नेशनल हेराल्ड की पत्रकार संजुक्ता का खुलासा
राहुल गांधी के 'पक्ष' में लिखने के मिलते हैं 1000 रुपए! नेशनल हेराल्ड की पत्रकार संजुक्ता का खुलासा
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नई दिल्ली: कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड (National Herald) ने अपनी पूर्व संपादकीय सलाहकार संजुक्ता बसु (Sanjukta Basu) को कथित तौर पर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के पक्ष में लेख लिखने के लिए 3000 रुपए देने का वादा किया था। मगर उन्हें सिर्फ 1000 रुपए प्रति लेख ही दिए गए। संजुक्ता बसु ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर खुद इस बात का खुलासा किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में दावा करते हुए कहा कि उनकी पब्लिक इमेज से भले से लोगों को ऐसा लगता है कि वह लाखों रुपए कमा रही हैं। मगर, यह सच नहीं है। उन्होंने बताया कि वह नेशनल हेराल्ड में एक संपादकीय सलाहकार थी। मगर, राहुल गाँधी के समर्थन में आर्टिकल लिखने के लिए उन्हें कभी लाखों रुपए नहीं दिए गए। बल्कि उन्हें 3000 रुपए भुगतान करने का वादा करके सिर्फ 1000 रुपए थमा दिए गए। पूरे पैसे भी कभी नहीं दिए गए।

संजुक्ता बसु ने सोमवार (6 मार्च) को ट्वीट करते हुए कहा कि, 'यह बेहद हैरान करने वाला है कि मैंने कभी भी पैसे न दिए जाने के बारे में खुलकर नहीं बोला है। मेरी पब्लिक इमेज से भले ही ट्रोल्स को ऐसा लगता हो कि मैं लाखों में कमा रही हूँ। नेशनल हेराल्ड ने मुझे राहुल गाँधी के पक्ष में लेख लिखने के लिए लाखों रुपए दिए हो। मगर, उन्होंने तो मुझे पूरे पैसे भी नहीं दिए। 3000 रुपए का वादा करके सिर्फ 1000 रुपए ही दिए।' इसके बाद संजुक्ता बसु ने लिखा कि, 'लेकिन जो चीज मुझे जीवंत महसूस कराती है, जो मुझे मेरा MOJO देती है। वह मेरी पब्लिक इमेज है। मुझे इससे बेहद प्यार है। मैं इसके लिए ही जन्मी थी। मैं देखने और सुनने के लिए जन्मी थी। मगर, जो चीजें मैं करती हूँ, लिखती हूँ, कहती हूँ, जरूरी नहीं कि उसके लिए मुझे पैसा ही मिले।' इसके बाद उन्होंने कुछ सोशल मीडिया यूजर्स के सवालों के जवाब भी दिए।

बता दें कि नेशनल हेराल्ड, द एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) द्वारा प्रकाशित किया जाता है। इसका स्वामित्व राहुल गांधी और सोनिया गांधी के स्वामित्व वाली कंपनी यंग इंडियंन के पास है। ‘नेशनल हेराल्ड’ की स्थापना 1937 में की गई थी। AJL उस समय उर्दू में ‘कौमी आवाज़’ और हिंदी में ‘नवजीवन’ नामक समाचार पत्र निकालता था। अक्सर इसमें जवाहरलाल नेहरू के लेख छपा करते थे। अंग्रेज सरकार ने 1942 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। देश की आज़ादी के बाद नेहरू इसके बोर्ड के अध्यक्ष पद से तो हट गए, लेकिन अख़बार कांग्रेस की निगरानी में ही चलता रहा। 2016 में इसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के रूप में भी लॉन्च किया गया।

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