भगवान शिव के पसीने से नर्मदा प्रकट हुई, उनके जन्म से वो बहुत प्रसन्न हुए और उनका नाम नर्मदा रखा. इसका एक नाम रेवा भी है, नर्मदा ने 10,000 दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से कुछ ऐसे वरदान प्राप्त किए जो कि अन्य किसी नदी के पास नहीं है - जैसे,-
प्रलय में भी मेरा नाश न हो .
मेरे तट पर शिव-पार्वती सहित सभी देवता निवास करें.
मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित है .
मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी नदी के रूप में प्रसिद्ध रहूं .
नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया, नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी. विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला में अधिक है. प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया .