धो दूंगी सबके पाप, पहले मुझे तो बचाओं आप - नर्मदा
धो दूंगी सबके पाप, पहले मुझे तो बचाओं आप - नर्मदा
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सोमनाथ में रहने वाले सज्जन ने अपने बच्चो से वादा किया था कि उन्हें कही बहार घुमाने ले जायेंगे, बच्चो की आँखों में भी गोवा के समंदर किनारे मस्ती-मज़े के नज़ारे घुमने लगे | अब आज का बच्चा बनारस या बद्री-केदार की बात तो करेगा नही पर भाईसाब को धार्मिक भूमि ओंकारेश्वर जाने का मन था तो उन्होंने बच्चो को समझाया कि ओंकारेश्वर में ज्यादा मज़ा आयेगा वहां बहुत बड़ी और गहरी नर्मदा नदी है जो लक्ष्मण झुला पूल से और भी बड़ी नज़र आती है, किनारे पर भी बहुत पानी रहता है उसमे खूब नहाओ-,मस्ती करो-खेलो, बहुत मज़ा आयेगा |

बेचारा भोलाभाला बच्चा कुटनीतिक पिता की बातो में वैसे ही आ गया जैसे हर चुनाव में हम और आप आ जाते है | अब बच्चे की आँखों में, सपने ने भी थोड़ा करेक्शन कर लिया गोवा से ओंकारेश्वर और सागर की  जगह नदी का किनारा खूब सारा पानी और बेइंतेहा मस्ती-मज़ा घुमने लगा और इस कल्पना को करते-करते वो आ पहुंचा लक्षमण झुला पूल पर और आते ही नर्मदा जी को देख कर पिताजी से पहला सवाल किया पापा ये, तालाब तो देख लिया वो बड़ी नर्मदा नदी दिखाने कब ले जायेंगे | पिताजी की चहरे पर अब वैसी ही ख़ामोशी थी जो हमारे पूर्व प्रधानमंत्री के मुख पर हमेशा रहती थी |

जिस नदी की भव्यता,विशालकाय चौड़े पाट और तेज धाराओं का सपना दिखाकर बच्चो को गोवा से ओंकारेश्वर ले आये | वो नर्मदा तो एक तालाब के समान छोटे-छोटे गड्ढो में ऐसी निर्जीव पड़ी है जैसे वो बारिश का बचा पानी हो, ना कलकल का शोर,ना धाराओ का जोर बस खामोश,निढ़ाल | जो नदी दुसरो को तृप्त करती थी आज खुद प्यासी पड़ी है |

अब नज़र डालते है इसके कारण पर, तो साहब कारण है N.H.D.C. बाँध प्रबंधन की मनमानी |

ये वही बांध है जो मध्यप्रदेश के जीवन रेखा माता नर्मदा पर विद्युत् उत्पादन के द्वारा प्रदेश में विकास की जीवन रेखा लम्बी करना चाहता था | 2003 से 2007 तक ऊँची-ऊँची दीवारे बनी ,दरवाज़े बने,520 MW बिजली पैदा हुई भी और कर्मचारी,अधिकारी,नेता,सरकार सब इस महान योजना पर अपनी पीठ थपथपाने लगे, अपनी दूरदर्शी सोच का गुणगान करने लगे पर विज्ञान के इस चमत्कार का सबसे बड़ा प्रहार धर्म पर, आस्था पर, विश्वास पर और सबसे ज्यादा स्वयं माँ नर्मदा पर हुआ |

 

वो नदी जो मानव सभ्यता के आरम्भ से इस धरा पर अविरल धारा बनकर युगों-युगों से बहे

जा रही है | आज विज्ञान उसी के प्रवाह को रोक कर ना केवल अपाहिज़ बना रहा है बल्कि उसे सुखा भी रहा है टूटती धारा, सूखते घाट, सिकुड़ते पाट का नज़ारा,मैया नर्मदा की दयनीय व्यथा की पूरी कथा बयान कर रही है | वैसे ही अधिकारियो रूपी दुर्योधन के सहारे अवैध रेत उत्खनन का दुशासन नर्मदा के अस्तित्व का चीर हरण कर रहा है, ऐसे में NHDC द्वारा रोका जा रहा पानी नर्मदा के भविष्य पर भी प्रश्नचिंह लगा रहा है | प्रदेश के लाडली लक्ष्मियो को सुनहरा भविष्य देने वाले मामाजी क्यों भूल जा रहे है की जल हैं तो कल है अभी कुछ जिलो में बारिश नही हुई तो हालत बिगड़ गये अगर ऐसे में नर्मदा का अस्तित्व भी सूखने लगा तो मध्य प्रदेश को मृत प्रदेश बनने में समय नही लगेगा |

पर बात यही खत्म हो जाती तो और बात थी लेकिन ओंकारेश्वर संपूर्ण भारतवर्ष में जो अध्यात्मिक महत्तव रखता है, उस वजह से यहाँ सदैव श्रधालुओ का ताँता लगा रहता है और बांध बनने के बाद  पानी के घाटो से दूर होने ,ठहरे पानी में बनी काई से फिसलने, दलदली रूप होने, चट्टानों से गिरने जैसे कारणों से 2007 से 2017 तक 170 श्रद्धालुओ की जान जा चुकी है | जरा सोचिये जो धारा  कभी मानव के उद्धार के लिए जानी जाती थी आज उस पर संहार का लांछन लग रहा है |

जब बांध प्रबंधन, शासन, प्रशासन सबने माँ से मुह मोड़ लिया तब माँ के अस्तित्व के लिए आगे आये ऋषि,मुनि,योगी,ज्योतिषाचार्य और आम नागरिक जिन्होंने आरम्भ किया  “नर्मदा महासंग्राम “  एक ऐसा आन्दोलन जिसमे ना केवल स्थनीय लोग बल्कि आने वाले पर्यटक और शिवभक्त भी सम्मिलित हो गये और विगत कई दिनों से धरना-हड़ताल के जरिये ये कुंभकर्ण की नींद सोये जिम्मेदारो को जगाने में लगे हैं, छोटे-छोटे मासूमो ने मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को ख़त तक लिखे लेकिन जब नतीजा नही निकला तो कल योगियों, तपस्वियों, और आमजनो ने ओंकारेश्वर के स्वागत द्वार को ही जाम कर दिया और न्याय नही मिलने पर राजमार्ग को जाम करने की चेतावनी दी, तब जाकर जिम्मेदारो को नर्मदा का महत्तव और दुर्दशा दिखाई दी | नर्मदा पर सरकार कितनी संवेदनहीन है इसका पता चला  पुनासा एसडीएम के बयान से जिसमे उन्होंने स्वीकार किया कि अगर आन्दोलन नही होता तो प्रशासन और N.H.D.C. बाँध प्रबंधन नही जागता | आप सोचिये,धर्म जिस देश की पहचान है जब उसी धर्म को बचाने के लिए जब एक भागवत वाचक,ज्योतिषाचार्य गोपाल कृष्णा दुबे को, घाट छोड़कर सड़क पर बैठना पड़ता है तो हमारे ही देश में, हमारे ही धर्म-आस्था और मान्यताओ की क्या स्थिति है,आप स्वयं अनुमान लगा ले |

नर्मदा भक्तो के इस आन्दोलन ने विधायक तोमर को मजबूर कर दिया है कि वो अब विज्ञान नही आस्था और विश्वास को प्राथमिकता दे | भोपाल के विधानसभा में चीखने वालो को ये नज़र नही आता, की महाराष्ट्र से माँ की अस्थिया लेकर आया एक बेटा उसे धारा में बहाने के लिए माँ के अस्थि कलश को सड़क पर लेकर बैठा है | पोलेंड से आया एक विदेशी,इस देशी धारा में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करना चाहता है | या हम इंतज़ार करे कि गुजरात के बाद जब मध्य प्रदेश में चुनाव आएंगे तो प्रधामंत्री जी ओंकारेश्वर में भी बुलेट ट्रेन चलने की घोषणा करेंगे और तब नर्मदा में फिर पानी आ जायेगा या राहुल जी मप्र में आएंगे मंदिर-मंदिर जायेंगे तो ओंकारेश्वर भी आएंगे और सत्ता में आने पर नर्मदा में फिर पानी भरने का वादा कर के जायेंगे |

इससे पहले की नर्मदा की हालत दिल्ली में सिसक रही यमुना जैसी हो जाये |

इससे पहले की ओंकारेश्वर में घाट नर्मदा का शमशान घाट बन जाये |

इससे पहले की नर्मदा भी सिन्धु घाटी की सभ्यता की तरह कही खो जाये |

हम सभी को नर्मदा नदी के प्रति अपने दायित्वों को समझाना पड़ेगा | बाँध मानव विकास के लिए जरूरी है लेकिन नर्मदा मानव जीवन के लिए नितांत आवश्यक है | उसे बचाना,संवारना और सहेजना बढेगा | तभी हमारी जीवन रेखा नर्मदा का जीवन बचेगा

लेकिन एक सवाल जो में आपके बीच छोड़ कर जा रहा हू वो ये की जब जनता याद दिलाएगी क्या तभी सरकारों को अपने कर्तव्यो की याद आएगी ? क्या अपनी योजनाओं का समय-समय पर मूल्यांकन और उसके प्रभावों का अध्ययन करना जिम्मेदारो का नैतिक दायित्व नही है ? मेरा मार्गदर्शन कीजिये  |

 
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