आप सभी को बता दें कि माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती का पर्व मनाते है. ऐसे में इस बार नर्मदा जयंती 12 फरवरी, मंगलवार को यानी आज है. कहते हैं नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक मानी गई है और ऐसे में इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी देखने को मिलता है. आइए आज आपको बताते हैं नर्मदा नदी कहां से आई.
कहाँ से आई नर्मदा - कहते हैं एक बार भगवान शंकर लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैखल पर्वत पहुंचे. उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ. इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई. जो शांकरी व नर्मदा कहलाई. शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी. रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ. मैखल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैखल-सुता भी कहलाई. एक अन्य कथा के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं. उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया.
भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश दिया. नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा. इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं. अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, शांडिल्य, कपिल आदि ऋषियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की है. ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर ही आदि शंकराचार्य ने शिक्षा पाई और नर्मदाष्टक की रचना की. भगवान शंकर ने स्वयं नर्मदा को दक्षिण की गंगा होने का वरदान दिया था.पुराणों के अनुसार नर्मदा का उद्भव भगवान शंकर से हुआ. तांडव करते हुए शिव के शरीर से पसीना बह निकला. उससे एक बालिका का जन्म हुआ जो नर्मदा कहलाई. शिव ने उसे लोककल्याण के लिए बहते रहने को कहा.
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