मनमोहन मोदी के मन की बात
मनमोहन मोदी के मन की बात
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“मन के हारे हार है,मन के जीते जीत,मौन मनमोहन पर भारी पड़ गए मोदी के सुर-संगीत” बस एसा ही फ़लसफ़ा अभी हाल ही में बीते दौर की भारतीय राजनीति में देखने को मिला | जिस प्रकार की राजनीति पिछले साठ सालों से होती आ रही थी उससे हिंदुस्तान की आवाम मानो जैसे उब-सी गई थी,और इंसान जब उब जाता है तो मन का रंजन करने के लिए किसी मदारी या नौटंकीबाज़ की और रुख़ करता है | और जहां मनोरंजन की गुंजन या गर्जना होती है वहां जनता उसे देखने और सुनने के लिये पब्लिक उमड़ ही जाती है | भय्या भारतीय राजनीति और भारतीय संस्कृति समस्त संसार में भिन्न भी है और अभिन्न भी है,चूँकि इसे ना गोरे अंग्रेज़ समझ पाए और ना ही स्वयं भारतवासी इसकी तह तक पहुँच पाए | 

सीधे मुद्दे की बात पर आते है और भारतीय राजनीति पर दो टुक कटाक्षपूर्ण टिपण्णी में मन की बात से मन का रंजन करते है,वर्तमान भारतीय राजनीति में ऐसे-ऐसे नौटंकीबाज़ मुखौटे प्रकट हुए है जिन्होंने अपनी नौटंकी से राजनीति का रूप-प्रारूप ही बदलकर रख दिया और हिन्दुस्तानी आवाम की आँखों का कजरा बन गए | ऐसे एक नहीं कितने ही बहरूपिये है जो आज राजनीति के हीरो हीरालाल बन गए है,इनमे अहम् किरदार केजरू काका और मोदी भाऊ का है,ससुरा दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू है,बाकि बचे चवन्नी,अठन्नी,बारा आना और चार आना है |

ऐसे-ऐसे नए-नए ढोंग-धतूरे इन लोगों ने किये है और कर रहे है कि आवाम इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों से वशीभूत हो गई है,और आवाम ही नहीं इनके अपने घोड़े,हाथी,ऊंट और प्यादे भी सम्मोहन के शिकार हो गए है | जहां देखो वहां बस मन की बात का सहारा लेकर मन की मनमानी करते रहते है,अरे बड़े मियां थोड़ा अपने गिरेबान में भी झाँक लो | सारे जहां से लपड़-चपड़ करने वालों और मनमौजी बनने वालों तुम्हारे अपने कुटुंब में मुरली की मुरली के सुर क्यूँ बंद हो गए है,लाल कृष्णा क्यूँ काले-पीले हो रहे है,राज तो अराजकता में और शाह नीचता में बस डींगे मार रहे है, अरे भय्या काहे इतने मनमाने बर्ताव पर उतर आये हो? उधर डिग्री के फर्जीवाड़े में तोमर तो मर गए है,शान में गुस्ताखी के चलते भूषण,योगेन्द्र,बिन्नी सब शमशान हो गए है | 

नार्थ से साउथ तलक बस यही इडली-डोसा और छोले-कुल्चे राजनीति में हिलोरे ले रहे है,ललिता लाल-काली हो रही है,लालू को आलू नहीं मिला है,नितेश की नींदे उड़ी हुई है,मांझी पर मंथन हो रहा है,मुलायम तो मानो उत्तरप्रदेश के मूल आयाम हो गए है,शरद की सरहदों का कोई ठिकाना नहीं रहा है और पप्पू अपनी पल्टन के साथ पाप धोने में पता नहीं कौन से साबुन-वाबुन का यूज़ कर रहे है,मोहन का मोह ख़त्म हो गया है,सोणिया शांत बैठी है,राजे का राज संकट में चनकट खुजाल रहा है,शुष्मा लल्लू की माँ बन गई है,ममता की मौज जनता की फ़ौज हो गई है,अन्ना बन्ना को धमकी भरा पन्ना मिल रहा है और जाने क्या-क्या मदारी का खेल आज देश की राजनीति में मेट्रो ट्रेन के माफिक चलायमान है | देखने वाली बात तो यह होगी की शतरंज की इस बिसात पर देखते है कौन कब तक मैदान में टिक पाता है और कौन इतिहास बनाता है ?

वैसे केजरू काका ने जिस तरह मात्र 13 महीने में राजनितिक प्रसिद्धि हासिल की है और भारतीय राजनीति को एक नया विचार दिया है,इस इसाब से उनको भारत रत्न दिया जाना चाहिए |  

अरुण पंचोली

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