कोई लौटा दे आम आदमी के अच्छे दिन
कोई लौटा दे आम आदमी के अच्छे दिन
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वर्ष 2014 के आम चुनाव को लेकर मोदी लहर में सारा देश बह गया। राजनीति की दंगल में अच्छों - अच्छों को भाजपा ने धूल चटा दी। मोदी की आंधी ऐसी चली कि कांग्रेस का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। देश के एक नेता ने चायवाला मोदी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तौर पर शपथ ली तो लगा जैसे अब जागरण का शंखनाद होने वाला है। हर कहीं लोग उत्साहित हो उठे। हर कोई कहने लगा अच्छे दिन, अच्छे दिन, अच्छे दिन आने वाले हैं नहीं आ गए हैं।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विकासवादी सोच ने देश के विकास को ईंधन देने का काम तो किया मगर इस विकासवादी सोच के नीचे आम आदमी पिस गया। आम आदमी को उम्मीद थी कि नमो मंत्र का जादू चलेगा और उनकी थाली में अब सूखी रोटी की जगह पंच पकवान सजेंगे। मगर यहां तो गरीबी में आटा फिर से गीला होता नज़र आने लगा।

आम आदमी परेशान है एक तो नौकरी पर तलवार लटक रही है उपर से रही सही कसर महंगाई पूरी कर रही है। अब ऐसे में न तो सावन के झूले अच्छे लगते हैं और न किसी मीत के गीत आम आदमी रोते हुए यही राग अलापने को मजबूर है भूख और बवाल है महंगाई से हाल बेहाल है। लोग आटे दाल के भाव क्या याद रखें, गड्डी में पैट्रोल खत्म होते ही जेब खाली होने पर आदमी परेशान होकर पसीना पोछने लगता है।

गृहिणियां परेशान हैं कि रसोई का खर्च कम करे कि ब्यूटी पार्लर में संवरना बंद करें। अब तो नए कपल्स को भी रेस्टोरेंट में रोज़ - रोज़ का खाना रास नहीं आ रहा। तो गर्मी की छुट्टियां मनाने के लिए लोगों को ट्रेन का टिकिट कटवाने से पहले अपने बजट को कई बार मैनेज करना पड़ रहा है। हालांकि मोदी का नमो मंत्र कल के भारत के लिए बेहतर बताया जा रहा है लेकिन महंगाई से आम आदमी बेहाल हो रहा है। लोगों को फिर यही गाना याद आ रहा है कि महंगाई ने हमरा बट्टा बिठा दिया...।

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