नारायण सेवा संस्थान ने लगया निशुल्क आर्टिफिशियल लिम्ब डिस्ट्रीब्यूशन कैंप
नारायण सेवा संस्थान ने लगया निशुल्क आर्टिफिशियल लिम्ब डिस्ट्रीब्यूशन कैंप
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br /> दिल्ली, 22 जुलाई,2019: खास तौर पर पोलियोग्रस्त और जन्मजात दिव्यांगों के लिए देश में चेरिटेबल अस्पताल संचालित करने वाले नारायण सेवा संस्थान ने दिल्ली के फतेहपुरी आश्रम में  निशुल्क आर्टिफिशियल लिम्ब डिस्ट्रीब्यूशन कैंप का आयोजन किया।
जुलाई में यह शिविर ऐसे दिव्यांगों को आर्टिफिशियल लिम्ब मेजरमेंट कैंप करने के लिए आयोजित किया गया था ताकि उनकी जरूरत के अनुसार इन कृत्रिम अंगों को विकसित किया जाए और फिर दिव्यांग लाभार्थियों को सशक्त बनाया जा सके। नारायण सेवा संस्थान की डॉक्टर डॉ. नेहा अग्निहोत्री के साथ  पांच प्रोस्थेटिक और ऑर्थोटिक इंजीनियरों और ऑर्थोपेडिक डॉक्टरों की टीम ने शिविर में 50 दिव्यांगों के आर्टिफिशियल लिम्ब लगाए । 
नारायण सेवा संस्थान ने जुलाई में अहमदाबाद, दिल्ली,अलीगढ़ और जयपुर में आर्टिफिशियल लिम्ब मेजरमेंट कैंप का आयोजन किया था । इसी क्रम में संस्थान की तरफ से अन्य शहरों में भी दिव्यांग लाभार्थियों के लिए ऐसे ही शिविर आयोजन किया जा रहा है । 
नारायण सेवा संस्थान के अध्यक्ष श्री प्रशांत अग्रवाल का कहना है, ‘‘ऐसे कैंपेन के जरिए, नारायण सेवा संस्थान ने 99,133 कैलीपर्स,10 हजार व्हीलचेयर, और 3,600 ट्राई साइकिल बांट दी हैं । हम दिव्यांग और आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के उपचार (करेक्टिव सर्जरी) के साथ उन्हें शैक्षणिक और व्यावसायिक ट्रेनिंग भी उपलब्ध करा रहे हैं, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता को विकसित करते हुए आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बन सकें । इसी कड़ी में अब तक करीब 2161 दिव्यांगों को ट्रेनिंग दी है ।”
राजस्थान में उदयपुर जिले के बडी गांव में स्थित नारायण सेवा संस्थान के अस्पतालों में  पिछले 30 वर्षों के दौरान 3.5 लाख से अधिक रोगियों का आॅपरेशन किया है। जन्मजात विकृति या दुर्घटना के कारण कुछ मामलों में लोग अपने शरीर का कोई अंग खो देते हैं जो प्रतिकूल रूप से उन्हें दूसरों पर निर्भर कर देता है जिससे ना केवल उनकी बल्कि दूसरों के जीवन पर भी एक बड़ा असर हुआ है। एक कृत्रिम अंग न केवल उनकी गतिशीलता में सुधार करता है बल्कि उनका आत्मविश्वास बढ़ाकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाता है। कृत्रिम अंगों से उनकी रोजमर्रा की सामान्य गतिविधियों की कठिनता कम हो जाती है। ऐसी गतिविधियां, जो सामान्य तौर पर चुनौतीपूर्ण या कठिन लगती हैं, कृत्रिम अंगों के साथ बहुत आसानी से उन्हें पूरा किया जा सकता है और परिवारों की जीवनशैली भी बदल जाती है ।

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