नारद जयंती पर जरूर पढ़िए देवर्षि नारद की यह पौराणिक कथा
नारद जयंती पर जरूर पढ़िए देवर्षि नारद की यह पौराणिक कथा
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आप सभी को बता दें कि आज नारद जयंती है. ऐसे में शास्त्रों में उल्लेख के अनुसार 'नार' शब्द का अर्थ जल है और ये सबको जलदान, ज्ञानदान करने एवं तर्पण करने में निपुण होने की वजह से नारद कहलाया है. कहा जाता है अथर्ववेद में भी अनेक बार नारद नाम के ऋषि का उल्लेख है और प्रसिद्ध मैत्रायणी संहिता में नारद को आचार्य के रूप में सम्मानित किया गया है. इसी के साथ कुछ स्थानों पर नारद का वर्णन बृहस्पति के शिष्य के रूप में भी मिलता है.

आज हम आपको नारद से जुडी एक ऐसी रोचक कथा बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. जी दरअसल नारद विष्णु के महानतम भक्तों में माने जाते हैं और इन्हें अमर होने का वरदान प्राप्त है. इसी के साथ नारद मुनि भगवान विष्णु की कृपा से ये सभी युगों और तीनों लोकों में कहीं भी प्रकट हो सकते हैं. कहते हैं ब्रह्मवैवर्तपुराण के मतानुसार ये ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न हुए और ऐसा विश्वास किया जाता है कि ब्रह्मा से ही इन्होंने संगीत की शिक्षा ली थी. कहते हैं कि दक्ष प्रजापति के 10 हजार पुत्रों को नारदजी ने संसार से निवृत्ति की शिक्षा दी जबकि ब्रह्मा उन्हें सृष्टिमार्ग पर आरूढ़ करना चाहते थे. ब्रह्मा ने फिर उन्हें शाप दे दिया था. इस शाप से नारद गंधमादन पर्वत पर गंधर्व योनि में उत्पन्न हुए. इस योनि में नारदजी का नाम उपबर्हण था. वहीं एक अन्य कथा के अनुसार दक्षपुत्रों को योग का उपदेश देकर संसार से विमुख करने पर दक्ष क्रुद्ध हो गए और उन्होंने नारद का विनाश कर दिया. कहा जाता है इसके बाद ब्रह्मा के आग्रह पर दक्ष ने कहा कि ''मैं आपको एक कन्या दे रहा हूं, उसका काश्यप से विवाह होने पर नारद पुनः जन्म लेंगे.'' आप सभी को बता दें कि ''भगवान विष्णु ने नारद को माया के विविध रूप समझाए थे.''

कथा है कि- एक बार यात्रा के दौरान एक सरोवर में स्नान करने से नारद को स्त्रीत्व प्राप्त हो गया था. स्त्री रूप में नारद 12 वर्षों तक राजा तालजंघ की पत्नी के रूप में रहे. फिर विष्णु भगवान की कृपा से उन्हें पुनः सरोवर में स्नान का मौका मिला और वे पुनः नारद के स्वरूप को लौटे. दक्ष ने ही इन्हें सब लोकों में घूमते रहने का शाप दिया था. यह भी मान्यता है कि पूर्वकल्प में नारदजी उपबर्हण नाम के गंधर्व थे और रूपवान होने की वजह से वे हमेशा सुंदर स्त्रियों से घिरे रहते थे. इसलिए ब्रह्मा ने इन्हें शूद्र योनि में पैदा होने का शाप दिया था. नारद की अहंकार मर्दन की कथा भी बहुत प्रसिद्ध है और अनेक प्रकार से बखान की गई है. नारदजी को अहंकार आ गया कि उन्होंने काम पर विजय प्राप्त कर ली है. भगवान ने एक बार अपनी माया से एक नगर का निर्माण किया, जिसमें एक सुंदर राजकन्या का स्वयंवर चल रहा था.

यह कथा तुलसीदासजी ने श्रीरामचरित मानस के बालकांड में दी है. नारदजी ने भगवान के पास जाकर उनका सुंदर मुख माँऐंगा ताकि राजकुमारी उन्हें पसंद कर ले. परंतु अपने भक्त की भलाई के लिए भगवान ने नारद को बंदर का मुंह दे दिया. स्वयंवर में राजकन्या (स्वयं लक्ष्मी) ने भगवान को वर लिया. जब नारदजी ने अपना मुंह जल में देखा तो उनका क्रोध भड़क उठा. नारदजी ने भगवान विष्णु को शाप दिया कि उन्हें भी पत्नी का बिछोह सहना पड़ेगा और वानर ही उनकी मदद करेंगे. नारद पुराण में उन्होंने विष्णु भक्ति की महिमा के साथ-साथ मोक्ष, धर्म, संगीत, ब्रह्म ज्ञान, प्रायश्चित आदि अनेक विषयों की मीमांसा प्रस्तुत की है. 'नारद संहिता' संगीत का एक उत्कृष्ट ग्रंथ है. बदरीनाथ तीर्थ में अलकनंदा नदी के तट पर नारदकुंड है, जिसमें स्नान करने से मनुष्य मात्र पवित्र जीवन की ओर मुखर होता है और मान्यताओं के अनुसार मरने के पश्चात मोक्ष ग्रहण करता है.

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