नमन : निर्भया गैंगरेप की चौथी बरसी
नमन : निर्भया गैंगरेप की चौथी बरसी
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सॉरी मम्मी || ये वो आखिरी शब्द है जो दामिनी ने अपनी माँ से कहे थे...

देश की राजधानी दिल्ली में 29 दिसंबर 2012 की उस काली रात के आज चार साल पूरे हो गए, जहाँ आज ही के दिन दिल्ली के मुनीरका में सामूहिक बलात्कार के बाद गंभीर रूप से घायल हुई निर्भया दो हफ्ते तक मौत से लड़ाई लड़ते हुए ज़िन्दगी की जंग हार गई थी.

आइये हम आपको याद दिलाते है कि आखिर उस रात हुआ क्या था-

-16 दिसंबर की सुबह 23 साल की स्टूडेंट दामिनी (निर्भया बदला हुआ नाम) के लिए आम रविवार जैसी सुबह थी, सड़के खाली थी, छुट्टी वाला दिन था, दामिनी का दोस्त जेनयू के पास ही रहता था, घर में उनका मन नहीं लग रहा था, दिल बेचैन था, कुछ भी खास करने को उस दिन नहीं था.

-उसी दिन रात में निर्भया अपने दोस्त के साथ मूवी देखकर लौट रही थी।

-16 दिसंबर की रात 10 बजकर 21 मिनट पर पीसीआर पर आई एक कॉल ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस कॉल में कहा गया था कि महिपालपुर फ्लाईओवर से उतरते ही गुड़गांव से दिल्ली की तरफ जा रही सड़क पर एक लड़का और लड़की बिना कपड़ों के बैठे हुए हैं। वहां काफी लोगों की भीड़ जमा है।

- वह एक बस में अपने दोस्त के साथ बैठी। बस में बैठे लोगों ने दोनों के साथ मारपीट की और लड़की का रेप किया। बाद में उन्हें बस से फेंक दिया।

- 13 दिन बाद इलाज के दौरान आज ही के दिन सिंगापुर में निर्भया की मौत हो गई थी। इस घटना के बाद देशभर में प्रदर्शन हुए थे।

-उस रोज़ आँधी आई थी, 16 दिसंबर के रात की वो मनहूस सुबह जिसकी शिकार निर्भया ज़रूर हुई थी, जख्मी ज़रूर निर्भया हुई थी, लेकिन दर्द पूरे देश को हुआ था.

निर्भया के साथ सबसे ज्‍यादा बर्बरता इसी ने की थी-

20 दिसंबर 2015 को जो नाबालिग रिहा किया गया था, उसने 16 दिसंबर 2012 की रात निर्भया पर सबसे ज्‍यादा जुल्‍म ढाए थे। निर्भया की मौत का सबसे बड़ा जिम्मेदार ये लड़़का ही था। पुलिस जांच में सामने आ चुका था कि इस छठे नाबालिग दोषी ने पीड़ित लड़की को आवाज देकर बस में बुलाया था। यही नहीं, बस में बैठने के बाद सबसे कम उम्र के इसी आरोपी ने बाकी पांचों लोगों को गैंगरेप के लिए न सिर्फ उकसाया बल्कि इस पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार भी बना।

लेकिन अफ़सोस 17 साल 6 महीने की उम्र में 16 दिसंबर 2012 को दिल्‍ली के बसंत विहार में निर्भया के साथ जिस शख्‍स ने सबसे ज्‍यादा बर्बरता की थी, वो आज सबसे कम सजा पाकर छूट गया। वही सामूहिक बलात्कार की पीड़िता के माता-पिता का इस नाबालिग की रिहाई पर कहना था कि मैं न्याय चाहती हूं और उसकी रिहाई पर रोक चाहती हूं।’

पुलिसगिरी को देशभक्ति मत कहिए… पुलिस यानि डर, वर्दी वाला गुंडा....?

एक सर्वे में लोगो से पूछा गया कि “पुलिस शब्द सुन कर आपके मन में कौन सी बात आती है?”. इस पर 558 जवाब आये. इनमे सबसे अधिक 61 लोगों ने कहा कि पुलिस शब्द सुनते उनके मन में भय या डर की भावना आती है जबकि 42 उसे भ्रष्ट या भ्रष्टाचार से जुड़ा मानते हैं. 25 लोगों ने कहा कि पुलिस का मतलब सरकारी या वर्दी वाला गुंडा होता है जबकि 14 इसे खौफ या आतंक से जोड़ते हैं. 18 लोगों के इसे चोर शब्द से जोड़ा. 9 के लिए यह शब्द घूस से जुड़ा है, 5 के लिए हफ्ता से और 7 के लिए डंडा से.

जो अन्य शब्द लोगों ने बताये उनमे ठुल्ला, मुसीबत, शामत, वर्दी के आड़ मे छिपा शैतान, शिकारी, बदतमीज, 20 रुपये वाला भिखारी, नेताओं की कठपुतली, अमीरों का टट्टू, हाईटेक चोर आदि शामिल थे. केवल 37 (लगभग 6%) लोगों के मन में इस शब्द के प्रति कोई दुर्भावना नहीं दिखी. इनमे 20 को इस शब्द से सुरक्षा, मदद आदि की भावना जगती है जबकि 17 को पुलिसवालों और उनके कठिन जीवन के प्रति गहरी संवेदना दिखी.

लेकिन आप संयोग देखिए कि इस घटना के चार साल पूरे होने के बाद भी इसी 15 दिसंबर को दिल्ली से फिर एक बलात्कार की खबर आई जिसने एक बार फिर यह साबित किया कि पुलिस पूरी क्षमता के साथ गश्त (पेट्रोलिंग) नहीं कर रही है.

वही दिल्ली पुलिस का कहना है कि उसके पास ड्राइवरों और अन्य स्टाफ की काफी कमी है. इससे गश्ती दल अपनी क्षमता के दो-तिहाई के बराबर भी गश्त नहीं कर पाते. यही नहीं, महिला जवानों की भी कमी है. यानी गश्त के लिए जाने वाले हर वाहन (खास तौर पर आपात प्रतिक्रिया वाहन) में महिला सिपाहियों की तैनाती भी नहीं हो पाती जबकि बलात्कार जैसे मामलों की सूचना मिलने के बाद मौके पर जाते समय पुलिस दल के साथ महिला सिपाही होनी ही चाहिए. ऐसा नहीं है कि समस्या के बारे में शीर्ष स्तर पर किसी को पता न हो क्योकि दिल्ली पुलिस का नियंत्रण केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास है, और उच्च न्यायालय भी पिछले हफ्ते दिल्ली पुलिस के लिए फंड जारी करने में कंजूसी बरतने और पुलिस जवानों की तैनाती को लेकर मंत्रालय की खिंचाई भी कर चुका है लेकिन ऐसा लगता है की इस फटकार का मंत्रालय पर कुछ ज्यादा हुआ नहीं है.

अब आप पूछेंगे की उस काली रात को फिर से जीने की ज़रूरत क्या है ? ज़रूरत है...

क्योकि उसी काली रात के बाद तो हम और आप जागे थे, हमने इस देश की संसद को मज़बूर किया की वो रेप के लिए एक शख्त कानून लेकर आये, और ऐसा हुआ. नए-नए कानून बनाये गए, फास्ट ट्रैक का गठन हुआ, दिल्ली मेट्रो में महिलाओं की सुरक्षा के लिए महिला पुलिस की व्यवस्था की गई, बलात्कारी को जल्द से जल्द सज़ा देने का प्रावधान भी बनाया गया. लेकिन आज चार साल बाद जो सच आपके सामने है उसके बाद पूरा देश, पूरा समाज, पूरी व्यवस्था, पूरी पुलिस, पूरी सरकार यही कहेगी कि....

"हम शर्मिंदा है ! सॉरी दामिनी !!"

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