तलाक-उल-सुन्नत के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिला, कहा- ये बर्बर रिवाज़
तलाक-उल-सुन्नत के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंची मुस्लिम महिला, कहा- ये बर्बर रिवाज़
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नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम शख्स के द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी वक़्त बेवजह तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) मामले में केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब देने के लिए कहा है। नोटिस का जवाब देने के लिए केंद्र को 8 हफ़्तों का वक़्त दिया गया है। यह नोटिस जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने जारी किया है। यह याचिका एक 28 साल की मुस्लिम युवती ने दायर की है, जो 9 महीने के एक बच्चे की माँ है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, याचिका दायर करने वाली मुस्लिम महिला ने तलाक उल सुन्नत को मनमानी, असंवैधानिक और बर्बर रिवाज कहा है। बता दें कि महिला के पति ने अगस्त 2021 में उसे तीन तलाक देकर छोड़ दिया था।

याचिका दायर करने वाली महिला के वकील बजरंग वत्स ने कोर्ट में उनका पक्ष रखा है। उन्होंने कोर्ट से माँग की है कि तलाक-उल-सुन्नत द्वारा तलाक के बारे में चेक और बैलेंस के तौर पर विस्तृत दिशा-निर्देश या कानून जारी किए जाएँ। साथ ही इस बात की भी माँग की गई है कि मुस्लिम विवाह को सिर्फ एक कॉन्ट्रैक्ट न मानते हुए एक स्थिति घोषित किया जाए। केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में वकील  मोनिका अरोड़ा ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने बुधवार (12 जनवरी) को कोर्ट में जानकारी दी है कि केंद्र सरकार द्वारा 2019 में बनाए गए कानून में तीन तलाक को कवर किया गया है। हालांकि, उसमें तलाक के अन्य रूपों को नहीं जोड़ा गया था।

सितम्बर 2021 में न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने याचिका को PIL के तौर पर सुनवाई के लिए मंजूर किया था। यह याचिका गत वर्ष सितम्बर में ख़ारिज कर दी गई थी। याचिका को ख़ारिज करने के का रण इस मामले में संसद का पहले से हस्तक्षेप बताया गया था। बाद में इस पर पुनर्विचार करने की माँग की गई थी। इस मामले में अगली सुनवाई 2 मई को मुक़र्रर की गई है।

क्या है तलाक-उल-सुन्नत?

बता दें कि ‘तलाक-उल-सुन्नत’ किसी मुस्लिम शख्स द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी वक़्त बिना किसी कारण के तलाक देने के एकाधिकार को कहते हैं। हालांकि, यह एक बार में लागू नहीं होती। इसे रिकवरेबल तलाक भी कहा जाता है। तलाक के इस रूप में पति-पत्नी के बीच कॉन्ट्रैक्ट की संभावना भविष्य में बनी रहती है। इसलिए इसे तीन तलाक से अलग माना जाता है। इसे शिया और सुन्नी दोनों पंथों के लोग मानते हैं।

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