26/11 मुंबई हमले की दर्दनाक कहानी, जब खून में नहा गई थी 'मायानगरी'
26/11 मुंबई हमले की दर्दनाक कहानी, जब खून में नहा गई थी 'मायानगरी'
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नई दिल्ली: तीन दिन बाद यानी 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमलों की 13वीं बरसी है। ये एक ऐसा आतंकी हमला था, जिसे कोई भी देशवासी नहीं भूल सकता। 26 नवंबर 2008 का वो काला दिन था, जब पूरा देश आतंकी हमले के कारण सहम गया था। यूं तो इस हमले को 26 नवंबर के दिन याद किया जाता है, किन्तु कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मनीष तिवारी की एक किताब ने इस मामले को लेकर एक सियासी भूचाल मचा दिया है। दरअसल, तिवारी ने अपनी किताब में मनमोहन सरकार पर सवाल खड़े करते हुए लिखा कि 26/11 हमले के समय UPA सरकार ने वो कदम नहीं उठाए, जो उठाने चाहिए थे। उन्होंने ये भी लिखा कि उस समय तेजी से कार्रवाई करने की आवश्यकता थी। 

अब इस किताब को लेकर भाजपा ने भी कांग्रेस पर हमला शुरू कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि एयर चीफ मार्शल फली मेजर ने भी कहा था कि इस हमले के बाद एयरफोर्स मुंहतोड़ जवाब देना चाहती थी, किन्तु UPA सरकार ने ऐसा नहीं करने दिया। ऐसे में ये जानने के आवश्यकता है कि आखिर 26 नवंबर 2008 को आखिर हुआ क्या था? किस तरह आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी को दहला दिया था। मुंबई शहर में उस दिन चारों ओर खौफ और लाशें दिखाई दे रही थी। आज उस हमले को भले ही 13 वर्ष बीत गए हों, किन्तु उस हमले की याद आज भी कंपकंपी ला देती हैं। 26 नवंबर 2008 की शाम मुंबई अपने पूरे शबाब पर थी। रोज़ाना की तरह ये शाम भी गुलजार होने जा रही थी कि अचानक शहर का एक हिस्सा में गोलियों की तड़तड़ाहट से गूँज उठा। पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर ए तय्यबा के 10 आतंकवादी 26 नवंबर 2008 को समुद्र के रास्ते मायानगरी में घुस आए थे। आतंकियों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया था, जिसका आगाज़ लियोपोल्ड कैफे और छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (CST) से हुआ था।

पहले तो किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि यह हमला इतना बड़ा हो सकता है। मगर धीरे धीरे मुंबई के और हिस्सों से बम ब्लास्टस और फायरिंग की खबरें आने लगी थीं। आधी रात होते होते मुंबई शहर की फिजाओं में आतंक का खौफ साफ़ दिखाई देने लगा था। मुंबई के सबसे व्यस्ततम रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर दो आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थी और हैंड ग्रेनेड भी फेंके थे। जिसके चलते 58 बेगुनाह यात्री मारे गए थे। जबकि कई लोग गोली लगने और भगदड़ मचने के कारण जख्मी हो गए थे। यह हमला अजमल आमिर कसाब और इस्माइल खान नामक आतंकियों ने किया था। ताजमहल पैलेस एंड टॉवर होटल में भी गोलीबारी, दस धमाके, आगजनी की गई थी, दक्षिण मुंबई पुलिस मुख्यालय में आतंकियों ने फायरिंग की थी।  मज़गांव डॉक से गोलाबारूद से भरी हुई बोट मिली थी। इन तमाम जगह हुए हमलों में खूंखार आतंकियों ने 18 सुरक्षाकर्मियों सहित 166 लोगों की हत्या कर दी थी। 

26 नवंबर की रात में ही सभी आतंकियों ने ताज होटल की तरफ रुख कर दिया था। यहां दहशतगर्दों ने कई लोगों को बंधक बना लिया था, जिनमें 7 विदेशी नागरिक भी शामिल थे। ताज होटल के हेरीटेज विंग में आतंकियों ने आग लगा दी थी। 27 नवंबर की सुबह NSG के कमांडो आतंकवादियों का मुकाबला करने पहुंच चुके थे। सबसे पहले होटल ओबेरॉय में बंधकों को मुक्त कराकर ऑपरेशन 28 नवंबर की दोपहर को पूरा हुआ था, और उसी दिन शाम तक नरीमन हाउस के आतंकियों को भी ढेर कर दिया गया था। मगर होटल ताज के ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने में 29 नवंबर की सुबह तक का समय लग गया था। मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस में आतंक मचाने वाला आतंकी अजमल आमिर कसाब एनकाउंटर के बाद ताड़देव इलाके से जिंदा पकड़ा गया था। वह बुरी तरह जख्मी था। बाद में उसने पाकिस्तान की आतंकी साजिश की पोल खोलकर रख दी थी। उसी ने मार गए अपने साथी आतंकियों का नाम बताया था। बाद में कसाब पर केस चला और फिर उसे फांसी दे दी गई। 

लेकिन इन सबके बीच तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के नेता, इस पूरे हमले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की साजिश बताने में अपनी जान झोंक रहे थे और पाकिस्तान को क्लीन चिट दे रहे थे। कांग्रेस की इस थ्योरी को आगे बढ़ाने का काम किया था अजीज़ बर्नी ने, जिन्होंने ‘26/11 RSS की साज़िश’ नाम से एक किताब प्रकाशित की थी। वहीं, कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह खुद इस किताब का लोकार्पण करने भी पहुंचे थे। लेकिन इस झूठ को फैलने से न तो तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने रोका और न ही बकौल शहजाद पूनावाला भारतीय वायुसेना को कार्रवाई करने की इजाजत दी, जो पाकिस्तान को सबक सीखाने की ठान चुकी थी। पाकिस्तान ने भी यह पूरी साजिश इसी प्रकार रची थी, ताकि हिन्दुओं को आतंकी घोषित किया जा सके और इसमें उसे तत्कालीन कांग्रेस सरकार का भरपूर साथ मिला। पाकिस्तान ने आतंकियों के हाथ में हिन्दुओं की तरह कलावा बाँध दिया था और उनके जेब में हिन्दू नाम वाले परिचय पत्र रख दिए थे, इन सबको हमलों में ही मर जाने का आदेश था। लेकिन मुंबई पुलिस के एएसआई तुकाराम ओंबले ने पाकिस्तानी साजिश की पोल खोल दी, तुकाराम ने अकेले ही खुद गोलियों से जख्मी होने के बाद भी कसाब को जिन्दा पकड़ लिया। तुकाराम तो शहीद हो गए, लेकिन कसाब को पकड़कर वो देश को गुमराह होने से बचा गए। वरना आज तक पूरे भारतवासी यही समझते रहते कि मुंबई हमले में 166 लोगों को RSS ने मारा था और पाकिस्तान भला देश है। आज भी जब वो हमला याद आता है, तो मनमोहन सरकार का मौन और कांग्रेस नेताओं की हिन्दुओं के प्रति घृणा शहीदों का अपमान करती नज़र आती है। 

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