मेट्रो के लिए 54 हजार पेड़ों की बलि देगी सरकार, भारत के इतने शहर हो जाएंगे नष्ट !
मेट्रो के लिए 54 हजार पेड़ों की बलि देगी सरकार, भारत के इतने शहर हो जाएंगे नष्ट !
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नई दिल्ली : मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन हेतु महाराष्ट्र के समुद्री इलाकों के 54 हज़ार मैंग्रोव के पेड़ काटे जाएंगे। यह बस शुरुआत है, उस कथित विकास की जिसकी कीमत बस कुछ सालों में ही पूरा मुम्बई और महाराष्ट्र चुकाता हुआ नजर आएगा। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में तो यह भी स्वीकार लिया गया है कि इससे नवी मुंबई में बाढ़ आ सकती है। आपको इस बात से भी अवगत करा दें कि मैंग्रोव समुद्र के तटीय इलाकों में खारे पानी में उगने वाले पेड़-पौधे होते हैं। मैंग्रोव धरती और समुद्र के बीच एक बफर की तरह काम किया करते हैं। 

जानकारी के मुताबिक़, मैंग्रोव की तकरीबन 80 प्रजातियां मौजूद है और ये पौधे दलदल में उगते हैं। जहां पर ऑक्सीजन कम मात्रा में ही पाया जाता है। मैंग्रोव बाढ़ से बचाव का काम करता है। पर्यावरण के लिए समुद्र के किनारे मैंग्रोव बहुत जरूरी माने जाते हैं। जबकि सरकार यह तर्क दे रही है कि प्रत्येक पेड़ काटे जाने के स्थान पर हम 5 पौधे लगाएंगे। हालांकि ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता है, प्राकृतिक तौर पर उगे पौधों का विकल्प ही नहीं होता है। कहा जा रहा है कि वहां पर पर्यावास ही नहीं मिलेगा। हालांकि इस मामले पर कोई भी प्रतिक्रिया देश में देखने को नहीं मिल रही है। जबकि ठीक इसके उलट ऑस्ट्रेलिया में कोल परियोजना के लिए अडानी का भारी विरोध हुआ है।दुर्लभ वृक्षों और सरीसृपों को बचाने के लिए जनमत सर्वेक्षण तक किया गया था।

इस बात से तो हर कोई वाकिफ है कि हमारा देश ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित है।वैश्विक स्तर पर इससे निपटने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा 1000 अरब पेड़ पूरे विश्व में लगाने की सलाह भी दी गई है। इसका मतलब यह है कि लगभग अमेरिका जितने क्षेत्रफल में अगर पौधे लगे तो आशिंक तौर पर जलवायु परिवर्तन से इसमें मदद मिल सकती है। हालांकि हम इसका उल्टा ही कर रहे हैं और इस वर्ष भारत के कई शहर गर्मियों में अधिक तपे हैं। इस बार भारत में भीषण गर्मी देखने को मिली है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के आंकड़ों की माने तो भारत उन देशों में शामिल है, जिनपर जलवायु परिवर्तन का सबसे बुरा और अधिक प्रभाव पड़ने की आशा है। साथ ही इस पर मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑन टेक्नोलॉजी (MIT) के विशेषज्ञों का यह कहना है कि दुनिया कार्बन उत्सर्जन को सुझाए गए स्तर तक घटाने में सफल हो जाती है, तो भी भारत के कुछ हिस्सों में गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि मानव जीवन मुश्किल हो जाएगा। लेकिन इन रिपोर्ट्स से वर्तमान सरकार को कोई भी लेना-देना नहीं है, ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने तो जंगलों को कटाई के लिए अडानी को देने का मास्टरप्लान बना लिया है। मसलन छत्तीसगढ़ का सुदूर सरगुजा क्षेत्र जहाँ वनों की कटाई शुरू की जा चुकी है। जबकि इस मुद्दे पर एमआईटी का एक रिसर्च यह कहता है कि भारत के 25 शहर अगले 50 सालों में नष्ट हो जाएंगे। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें यह कहा गया है कि चेन्नई के लिए ये मियाद महज 20 वर्ष की है।

इन सभी बातों से यह तो साबित होता है कि पर्यावरण किसी के लिए मायने नहीं रखता है। ना ही मेरे लिए और न ही आपके लिए। वहीं यदि होता तो फिर हम सड़क के लिए 100 साल पुराने बरगद,पीपल के कटने का विरोध भी करते, ना कि उन्हें कटने देते। मानव ने पेड़ों की कतई को विकास की नजर से देखा है। ये पेड़-पौधे अब हमारे लिए हरियाली नहीं रहे हैं, जबकि हमारे लिए तो हरियाली का मतलब अब रंगीन पेंट हो गया है। कई वर्षों से नीम, पीपल और बरगद को हमने हमारा दुश्मन बनाया है, जबकि अब इसमें मैंग्रोव भी जुड़ चुका है।

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