25 साल की हुई मुलायम की पार्टी, 5 को रहेगी कार्यक्रम की धूम
25 साल की हुई मुलायम की पार्टी, 5 को रहेगी कार्यक्रम की धूम
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लखनऊ : यूपी की राजनीति में वर्चस्व रखने वाली मुलायम सिंग की समाजवादी पार्टी पूरे 25 वर्ष की हो गयी है. पार्टी ने अपने रजत जयंती समारोह को मानाने की तैयारी कर राखी है और 5 नबम्बर के दिन राज्य की राजधानी लखनऊ में रजत जयंती कार्यक्रम की धूम रहेगी. 

मुलायम ने अपने खून पसीने से समाजवादी पार्टी को सीचा हैं जो संकट के बादल बीते दिनों से सपा पर दिखाई दे रहे हैं उससे मुलायम सिंग दुखी हैं और अपनी पीड़ा को वे कई बार सार्वजानिक रूप से व्यक्त कर चुके हैं. बीते २५ वर्षों से सपा ने कई बड़े उतार चढ़ाव देखे हैं, कभी यूपी में राज किया तो कभी विपक्ष की भूमिका भी निभाई है.

लखनऊ का जनेश्वर मिश्र पार्क 5 नवंबर यानी शनिवार को समाजवादी पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह का गवाह बनेगा. यादव परिवार में हाल में मचे घमासान के बाद सपा इस समारोह के जरिये सियासी दमखम दिखाने की कोशिश में है. इस समारोह में शामिल होने के लिए समाजवादी विचारधारा से जुड़े दूसरे दलों के बड़े नेताओं को भी न्योता दिया गया है. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव इसी बहाने राज्य में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की तैयारियां भी कर रहे हैं.

4 अक्टूबर, 1992 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाने की घोषणा की. राम मनोहर लोहिया और राज नारायण जैसे समाजवादी विचारधारा के नेताओं की छत्रछाया में राजनीति का ककहरा सीखने वाले मुलायम वैसे तो सपा के गठन से पहले ही उत्तर प्रदेश के सीएम बन चुके थे,लेकिन इनकी अपने लोगों द्वारा खड़ी की गई अपनी कोई पार्टी नहीं थी. 1980 के आखिर में वो उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने थे जो बाद में जनता दल का हिस्सा बन गया.

मुलायम 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने. नवंबर 1990 में केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो मुलायम सिंह चंद्रशेखर की जनता दल (समाजवादी) में शामिल हो गए. अप्रैल 1991 में कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 1991 में यूपी में मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी हार गई और बीजेपी सूबे में सत्ता में आई. अगले साल यानी 1992 में मुलायम सिंह यादव ने जब अपनी पार्टी खड़ी की तो उनके पास बड़ा जनाधार नहीं था. नवंबर 1993 में यूपी में विधानसभा के चुनाव होने थे. सपा मुखिया ने बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए बहुजन समाज पार्टी से गठजोड़ कर लिया. समाजवादी पार्टी का यह अपना पहला बड़ा प्रयोग था. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पैदा हुए सियासी माहौल में मुलायम का यह प्रयोग सफल भी रहा. कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से मुलायम सिंह फिर सत्ता में आए और सीएम बने.

समाजवादी पार्टी का यह दौर पहले के दौर की तुलना में बिल्कुल अलग है. अखिलेश के काम करने का तरीका नेताजी से बिल्कुल जुदा है. चार-साढ़े चार साल तक पार्टी और सरकार के भीतर सबकुछ ठीक-ठाक चला लेकिन अगले विधानसभा की आहट मिलते ही देश के सबसे बड़े सियासी घराने में कलह शुरू हो गई. छह साल तक पार्टी से दूर रहे अमर सिंह की घर वापसी हुई. उन्हें महासचिव बनाया गया और राज्यसभा भेजा गया. बेनी प्रसाद वर्मा की भी घर वापसी हुई और राज्यसभा भेजे गए. चाचा शिवपाल और अमर सिंह के समर्थन से बाहुबली मुख्तार अंसारी की पार्टी के समाजवादी पार्टी में हो रहे विलय का अखिलेश ने विरोध किया. लेकिन नेताजी के आगे अखिलेश की नहीं चली.

फिर सीएम अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोपी कुछ मंत्रियों को अपनी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अखिलेश ने अपनी कैबिनेट में अहम मंत्रालयों का जिम्मा संभाल रहे चाचा शिवपाल यादव की भी कैबिनेट से छुट्टी कर दी. मुलायम सिंह ने बैलेंस करने की कोशि‍श में प्रदेश अध्यक्ष का पद बेटे से छीनकर भाई को सौंप दिया. हालांकि बाद में शि‍वपाल की कैबिनेट में भी वापसी हो गई और कलह का यह दौर शांत हुआ. लेकिन अखि‍लेश को प्रदेश अध्यक्ष का पद वापस नहीं मिल पाया. फिर अखिलेश ने चाचा शिवपाल समेत कुछ मंत्रियों की अपने कैबिनेट से छुट्टी कर दी. कलह का एक और दौर यादव परिवार में शुरू हुआ. मुलायम के चचेरे भाई और राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव पार्टी से निकाल दिए गए. अखि‍लेश के कुछ और करीबियों की भी पार्टी से छुट्टी कर दी गई.

2017 में होने वाले चुनाव के पहले पार्टी और परिवार में कलह के चलते अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को बहार का रास्ता दिखाया लेकिन मुलायम ने शिवपाल को वापिस पार्टी में शामिल किया. इस कलह के चलते तो कई बार ऐसा लगा की समाजवादी पार्टी पूरी तरह से टूट के बिखर जाएगी लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश ने बखूबी पार्टी को एक साथ जोड़े रखा और अब आगामी चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं और साथ ही शिवपाल को चुनाव पूर्व महागठबंधन के लिए दुसरे दलों को सांथ लेन की जिम्मेदारी भी सौंप दी.

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