फिल्म रिव्यू : 'दो लफ्जों की कहानी' सिनेमाघरों में रिलीज
फिल्म रिव्यू : 'दो लफ्जों की कहानी' सिनेमाघरों में रिलीज
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बालीवुड के मशहूर अभिनेताओ में शुमार एक्टर रणदीप हुड्डा जो कि अपनी पूर्व कि फिल्म 'सरबजीत' के बाद अपनी फिल्म दो लफ्जो कि कहानी के लिए भी काफी सुर्खियों में छाए हुए है. आज यह फिल्म जो कि सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो गई है. अभिनेता रणदीप हुड्डा ने अपनी इस फिल्म के लिए मार्शल आर्ट्स की टफ ट्रेनिंग भी ली है. इस फिल्म की अभिनेत्री काजल अग्रवाल जो कि इस फिल्म में एक दिव्यांग(जिसे दिखाई नहीं देता) लड़की का किरदार निभा रही हैं यह फिल्म निर्देशक दीपक तिजोरी के निर्देशन में बनी फिल्म है. एक वक्त पर कई फिल्मों में सह कलाकार की भूमिका में दीपक तिजोरी ने एक से बढ़कर एक फिल्में की. उसके बाद डायरेक्शन के क्षेत्र मे कदम रखकर दीपक ने 'ऊप्स' और 'फरेब' जैसी फिल्में बनाई और अब दीपक ने 'दो लफ्जों की कहानी' फिल्म डायरेक्ट की है. क्या यह फिल्म दर्शकों को रिझा पाएगी? आइए जानते हैं कैसी है ये फिल्म.....

कहानी: फिल्म की कहानी पूरी तरह से मलेशिया में बेस्ड है जहां सूरज (रणदीप हुड्डा) दिन रात 3 शिफ्ट में काम करके गुजर बसर करता है, वहीं एक बार उसकी मुलाकात दिव्यांग लड़की जेनी मतिहास (काजल अग्रवाल) से होती है. सूरज को जेनी से प्यार हो जाता है, अब कुछ ऐसे हालात आते हैं कि एक टाइम पर एमएमए फाइटर रहे सूरज को दोबारा फाइटिंग शुरू करनी पड़ती है जिसकी वजह से कई सारे ट्विस्ट और टर्न्स आते हैं और आखिरकार एक रिजल्ट सामने आता है.

स्क्रिप्ट: फिल्म की कहानी साल 2011 की कोरियन फिल्म 'Always' से प्रेरित है जिसकी कन्नड़ भाषा में भी 'बॉक्सर' नाम से फिल्म बनाई जा चुकी है. फिल्म का वन लाइनर अच्छा है लेकिन पूरी फिल्म के दौरान आपको कुछ ना कुछ कमी नजर आती है. फर्स्ट हाफ काफी लम्बा दिखाई देता है, हालांकि मलेशिया के विजुअल काफी अच्छे हैं.

अभिनय: रणदीप हुड्डा ने एक प्रेमी के साथ-साथ रेसलर का भी किरदार बखूबी निभाया है. वहीं काजल अग्रवाल ने एक दिव्यांग लड़की का किरदार निभाने में कोई भी कमी नहीं छोड़ी है. कई सारे ऐसे सीक्वेंस भी आते हैं जब इन दोनों एक्टर्स के बीच में अच्छा तालमेल देखने को मिलता है.

कमजोर कड़ी: फिल्म की कहानी काफी प्रेडिक्टेबल है और कुछ भी ऐसा खास नहीं है जो आपको आकर्षित कर सके. वैसे तो फिल्म 127 मिनट की है लेकिन देखते हुए काफी लम्बी लगती है. 

संगीत: फिल्म का संगीत रिलीज से पहले ही अच्छा है और वो पर्दे पर अच्छा लगता है, ख़ास तौर पर 'जीना मरना' वाला गीत दिल छू लेता है.

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